SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ तत्त्वार्थसूत्र [५. २३-२४. बन्ध है और कर्म तथा नोकर्म का बन्ध जीवाजीव विषयक प्रायोगिक बन्ध है। __सूक्ष्मत्व और स्थूलत्व के अन्त्य और आपेक्षिक ये दो दो भेद हैं। जो सूक्ष्मत्व और स्थूलत्व दोनों एक ही वस्तु में विवक्षा भेद से घटित न हों वे अन्त्य और जो एक ही वस्तु में घट सकें वे आपेक्षिक सूक्ष्मत्व और स्थूलत्व हैं। परमाणु यह अन्त्य सूक्ष्मत्व का और जगद्व्यापी महास्कन्ध यह अन्त्य स्थूलत्व का उदाहरण है। वेल, आँवला और वेर ये आपेक्षिक सूक्ष्मत्व के और वेर, आँवला और वेल ये आपेक्षिक स्थूलत्व के उदाहरण हैं। प्रथम उदाहरण में पहली वस्तु से दूसरी में और दूसरी से तीसरी में अपेक्षाकृत सूक्ष्मता पाई जाती है और दूसरे उदाहरण में पहली वस्तु से दूसरी में और दूसरी से तीसरी में अपेक्षाकृत स्थूलता पाई जाती है। ___संस्थान इत्थंलक्षण और अनित्थंलक्षण के भेद से दो प्रकार का है । जिस आकार का 'यह इस तरह का है' इस प्रकार से निर्देश किया जा सके वह इत्थंलक्षण संस्थान है और जिसका निर्देश न किया जा सके वह अनित्थंलक्षण संस्थान है । गोल, त्रिकोण, चतुष्कोण, आयतचतुष्कोण इत्यादि संस्थानों के आकारों का निर्देश करना सम्भव है इसलिये यह इत्थंलक्षण संस्थान है और मेघ आदि के संस्थानों का आकार इस प्रकारका है यह बतलाना सम्भव नहीं इसलिये वह अनित्थं-- लक्षण संस्थान है। जो पुद्गल पिण्ड एकरूप है उसका भंग होना भेद है। इसके उत्कर, चूर्ण, खण्ड, चूर्णिका, प्रतर और अणुचटन ये छह प्रकार हैं। लकड़ी या पत्थर आदि का करोंत आदि से भेद करना उत्कर है। जौ और गेहूँ आदि का सत्तू या आटा आदि चूर्ण है। घट आदि का टुकड़े टुकड़े हो जाना खण्ड है। उड़द और मूग आदि की दाल आदि चूर्णिका है । मेघ, भोजपत्र, अभ्रक और मिट्टी आदि को तहें निकलना प्रतर है
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy