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________________ ५. २३-२४.] पुद्गलका लक्षण और उसकी पर्याय २२७ पुद्गलकी जो गुणपर्याय देखकर जानी जाय वह वर्ण है। यह पांच प्रकार का है-काला, नीला, पीला, सफेद और लाल । ये स्पर्श आदि मुख्य चार हैं पर इनके उक्त प्रकार से अवान्तर भेद बीस होते हैं। उसमें भी प्रत्येक के तरतमभाव से संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद होते हैं । स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण ये गुण हैं और कठिन आदि उन गुणोंकी पर्याय हैं । ये स्पर्शादि गुण पुद्गल में किसी न किसी रूप में सदा पाये जाते हैं, इसलिये पुद्गल के ये स्वतत्त्व हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों का भी मत है कि इनमें से किसी एक के पाये जाने पर प्रकट या अप्रकट रूप से शेप तीन अवश्य पाये जाते हैं। हमारी इन्द्रियां द्वथणुक आदि को तो ग्रहण करती ही नहीं, पर जिनको ग्रहण करती हैं उनमें भी जिनके स्पर्शादि गुणोंका इन्द्रियों द्वारा पूरी तरह से ग्रहण नहीं होता वे भी वहां हैं अवश्य । उदाहरणार्थ-उपरक्त किरणें ( Infra-red Rays) जो कि अदृश्य ताप किरणें हैं वे हम लोगों की आँखों से लक्षित नहीं हो सकती, तथापि उनमें वर्ण नियम से पाया जाता है क्यों कि उल्लू और विल्ली के नेत्र इन्हीं किरणों की सहायता से देखते हैं। इन्हें ये किरणें देखने में दीपक का काम देती हैं। कुछ ऐसे भी भाचित्रपट (photographic plates ) आविष्कृत हुए हैं जो इन किरणों से प्रभावित होते हैं और जिनके द्वारा अन्धकार में भी भाचित्र ( photographs ) लिये जा सकते हैं। ___ इसी प्रकार अग्नि की गन्ध हमारी नासिका द्वारा लक्षित नहीं होती किन्तु गन्धवहन प्रक्रिया ( teleolefaction phenomenon ) से स्पष्ट है कि गन्ध भी पुद्गल (अग्नि) का आवश्यक गुण है। वर्तमान में एक गन्ध वाहक यन्त्रका आविष्कार हुआ है जो गन्धको लक्षित करता है। यह यन्त्र मनुष्यकी नासिका की अपेक्षा बहुत अधिक सद्यहृष ( sensitive ) होता है । यह १०० गज दूरस्थ अग्निको लक्षित
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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