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२२६ तत्त्वार्थसूत्र
[५. २३-२४. प्रकृत में कालकी अपेक्षा घटित होनेवाले परत्व और अपरत्व ही लिये गये हैं । परत्वका अर्थ उम्रकी अपेक्षा बड़ा और अपरत्वका अर्थ उम्रकी अपेक्षा छोटा है।
ये परिणाम आदि भी कालके बिना नहीं होते इसलिये ये काल के उपकार माने गये हैं ।। २२॥
___ पुद्गलका लक्षण और उसकी पर्यायस्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ।। २३ ।। शब्दबन्धसौम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च
॥ २४ ॥ पुद्गल स्पर्श, रस, गन्ध और वर्णवाले होते हैं।
तथा वे शब्द, बन्ध, सूक्ष्मत्व, स्थूलत्व संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, आतप और उद्योतवाले भी होते हैं ।
पहले पुद्गल द्रव्यका अनेक बार उल्लेख किया है पर उससे यह ज्ञात नहीं होता कि इसका स्वरूप क्या है, इसलिये यहां सर्व प्रथम उसका स्वरूप बतलाया गया है। जो स्पर्श, रस, गन्ध और वर्णवाले होते हैं वे पुद्गल हैं। पुद्गलोंका यह स्वरूप अन्य द्रव्योंमें नहीं पाया जाता इसलिये पुद्गल स्वतन्त्र द्रव्य माना गया है। यद्यपि अन्यत्र जीव के अर्थ में भी पुद्गल शब्दका व्यवहार किया गया है पर यहां उसका अर्थ रूप रसादिवाला पदार्थ ही लिया गया है। __ जो छूकर जाना जाय वह . स्पर्श है। यह आठ प्रकारका हैकठिन, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । जो चखकर जाना जाय वह रस है। यह पांच प्रकार का है-तिक्त-चरपरा, आम्लखट्टा, कटुक-कडवा, मधुर-मीठा और कषाय-कसैला । जो सूंघकर जाना जाय वह गन्ध है । इसके सुगन्ध और दुर्गन्ध ये दो भेद हैं।