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________________ २१४ तत्त्वार्थसूत्र [५. १२-१६. उसमें ये धर्मादिक द्रव्य नहीं पाये जाते इसलिये वह आलोकाकाश कहलाता है। उक्त धर्मादि द्रव्यों में से धर्म और अधर्म द्रव्य का समग्र लोकाकाश में अवगाह है अर्थात् ये दोनों द्रव्य समग्र लोकाकाश को ऐसे व्याप्त कर स्थित हैं जैसे तिल में तेल। वास्तव में लोकालोक का विभाग इन दोनों द्रव्यों के कारण ही है । जितने आकाश में ये दोनों द्रव्य पाये जाते हैं वह लोकाकाश है और शेष आलोकाकाश । ____ यदि पुद्गल व्यक्तियों के अवगाह क्षेत्र का या व्यक्तियों से मिलकर बने हुए विविध स्कन्धों के अवगाह क्षेत्र का विचार न करके धर्म, अधर्म, पदगल सामान्य से पुद्गल द्रव्य मात्र के अवगाह क्षेत्र का और जीव द्रव्य के व विचार किया जाय तो वह समग्र लोक प्राप्त होता है, अवगाह का विचार क्योकि पुद्गल द्रव्य समग्र लोक में व्याप्त कर स्थित - है। किन्तु यहाँ पर सामान्य से पुद्गल द्रव्य मात्र के अवगाह क्षेत्र का विचार न किया जाकर पुद्गल व्यक्तियों के अवगाह क्षेत्र का या व्यक्तियों से मिलकर बने हुए विविध स्कन्धों के अवगाह क्षेत्र का विचार किया गया है। इसमें भी पुद्गल व्यक्ति परमाणु रूप एक ही प्रकार के होते हैं इसलिये उनमें से प्रत्येक का अवगाह क्षेत्र लोकाकाश का एक प्रदेश ही प्राप्त होता है किन्तु हीनाधिक इन परमाणुओं के संयोग से बने हुए स्कन्ध विविध प्रकार के होते हैं इसलिये उनका अवगाह क्षेत्र भी विविध प्रकार का होता है। जो दो परमाणुओं के संयोग से स्कन्ध बनता है उसका अवगाह क्षेत्र एक या दो प्रदेश होते हैं, क्योंकि यदि उन परमाणुओं का बन्ध एक क्षेत्रावगाही होता है तो अवगाह क्षेत्र एक प्रदेश होता है और यदि उनका बन्ध एक क्षेत्रावगाही नहीं होता है तो अवगाह क्षेत्र दो प्रदेश होता है। इसी प्रकार तीन, चार, पाँच, संख्यात, असंख्यात और अनन्त परमाणुओं के सम्बन्ध से बने हुए स्कन्ध का अवगाह क्षेत्र एक, दो,
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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