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________________ ५. १२-१६.] द्रव्यों के अवगाह क्षेत्र का विचार २१३ पुद्गल का अवगाह लोकाकाश के एक प्रदेश आदि में विकल्प से होता है। __जीवों का अवगाह लोकाकाश के असंख्यातवें भाग आदि में विकल्प' से होता है। __क्योंकि जीव के प्रदेशों का प्रदीप के समान संकोच और विस्तार होता है। लोक छह द्रव्यों का पिण्ड है। लोकाकाश का ऐसा एक भी प्रदेश नहीं जहाँ छह द्रव्य न हों। अब प्रश्न यह है कि इन छह द्रव्यों में से ___ कौन कौन द्रव्य आधेय हैं और कौन कौन द्रव्य आधार श्राधाराधय विचार हैं ? इसी प्रश्न का उत्तर देने के लिये प्रस्तुत सूत्रों की रचना हुई है। उनमें बतलाया है कि मात्र आकाश द्रव्य ही आधार है और शेप सब द्रव्य आधेय हैं। अर्थात् धर्मादि पाँच द्रव्यों की स्थिति आकाश में है और आकाश स्वप्रतिष्ठ है। अब प्रश्न ग्रह होता है कि जैसे धर्मादि द्रव्यों का आधार आकाश है वैसे आकाश का अन्य आधार होना चाहिये ? तो इसका यही उत्तर है कि आकाश का परिमाण सबसे बड़ा है इसलिये उसका कोई दूसरा अाधार नहीं है। तथापि धर्मादि द्रव्य श्राधेय हैं और आकाश आधार है यह सब कथन, औपचारिक है तत्त्वतः सभी द्रव्य स्वप्रतिष्ट है अर्थात् सभी द्रव्य अपने अपने स्वरूप में स्थित हैं, कोई किसी का आधार या आधेय नहीं है। तो भी धर्मादिक द्रव्य लोकाकाश के बाहर नहीं पाये जाते, केवल इसी अपेक्षा से यहाँ आधाराधेय भाव की कल्पना की गई है। ये धर्मादिक द्रव्य समग्र आकाश में नहीं रहते । वे उसके अमुक ___ भाग में ही पाये जाते हैं। इस प्रकार जितने भाग में लाकालाक विमान वे पाये जाते हैं उतना आकाश लोकाकाश कहलाता है। तथा इस भाग के चारों ओर जो अनन्त आकाश विद्यमान है,
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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