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________________ २१२ तत्त्वार्थसूत्र [५. १२-१६. होता है और कोई बन्ध ऐसा होता है जो दो परमाणुओं का होकर भी दो प्रदेशावगाही होता है। इसलिये बन्ध सर्वथा सर्वात्मना होता है यह भी नहीं मानना चाहिये और सर्वथा एकदेशेन होता है यह भी नहीं मानना चाहिये। शंका-प्रदेश और परमाणु में क्या अन्तर है ? समाधान-वैसे तो कोई अन्तर नहीं है किन्तु केवल व्यवहार का अन्तर है। जो विभक्त है या बंधकर विछुड़ सकता है वहाँ परमाणु या अणु व्यवहार होता है और जहाँ विभाग तो नहीं है और विभाग हो भी नहीं सकता किन्तु केवल बुद्धि से विभाग की कल्पना की जाती है वहाँ प्रदेश व्यवहार होता है। उदाहरणार्थ-पुद्गल द्रव्य के परमाणु अलग-अलग हैं या अलग हो सकते हैं इसलिये पुद्गल द्रव्य में मुख्यतया अणु व्यवहार देखा जाता है यही बात काल द्रव्य की है। उसके अणु भी अलग अलग हैं इसलिये वहाँ भी अणु व्यवहार होता है। किन्तु शेष द्रव्यों के प्रदेश न तो विभक्त हैं और न विभाग किया जा सकता है किन्तु केवल बुद्धि से विभाग की कल्पना की जाती है इसलिये वहाँ प्रदेश व्यवहार होता है ॥ १०-११ ॥ द्रव्यों के अवगाह क्षेत्र का विचारलोकाकाशेऽवगाहः॥ १२ ॥ धर्माधर्मयोः कृत्स्ने ॥ १३ ॥ एकप्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम् ॥ १४ ॥ असंख्येयभागादिषु जीवानाम् ॥ १५ ॥ प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत् ॥ १६ ॥ प्राधेयभूत द्रव्यों का अवगाह लोककाश में ही है। धर्म और अधर्म द्रव्य का अवगाह समग्र लोकाकाश में है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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