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________________ ५. ८-११.] उक्त द्रव्यों के प्रदेशों की संख्या का विचार २११ ___ समाधान-जैसे द्वथणुकका विभाग होकर दो परमाणु निष्पन्न होते हैं वैसे परमाणुका विभाग नहीं हो सकता, इसलिये द्रव्यदृष्टि से उसे निरंश माना है। किन्तु पर्यायदृष्टि से उसमें भी पूर्व भाग, पश्चिम भाग आदिरूप अंश कल्पना की जासकती है अन्यथा एक साथ अनेक परमाणुओं के साथ उसका बन्ध नहीं हो सकता। शंका-यतः बन्ध भी हो जाय और अंश कल्पना भी न करना पड़े इस लिये परमाणुओंका बन्ध परस्पर में सर्वात्मना होता है ऐसा मान लेना चाहिये ? ____समाधान-परमाणुओं का बन्ध परस्पर में सर्वात्मना होता है ऐसा मानने पर वह केवल एक प्रदेशावगाही प्राप्त होगा जो इष्ट नहीं है, इसलिये पर्यायार्थिक दृष्टि से परमाणु के अंश मान लेने में कोई आपत्ति नहीं है। ___ शंका-तो फिर अनन्त परमाणु बद्ध और अबद्ध दशामें एक प्रदेश पर भी रहते हैं, यह कथन कैसे बनेगा ? समाधान-एक तो परमाणु अति सूक्ष्म होने से वह अपने निवास क्षेत्र में अन्य परमाणु को आने से रोकता नहीं इसलिये एक प्रदेश पर अनन्त परमाणु समा जाते हैं। दूसरे एक परमाणु का दूसरे परमाणु या परमाणुओं से बन्ध कथंचित् एकदेशेन होता है और कथंचित् सर्वास्मना, इसलिये बद्ध दशा में अनन्त परमाणु एक प्रदेश पर भी रह जाते हैं और एकाधिक प्रदेशों पर भी। कोई बन्ध सूक्ष्म भाव को लिये हुए होता है और कोई बन्ध स्थूलभाव को लिये हुए होता है। इससे भी अवगाह में अन्तर पड़ जाता है। तात्पर्य यह है कि अबद्ध दशा में एक प्रदेश पर एक साथ जितने परमाणु प्राप्त होते हैं वे सब अवगाहन गुण की विशेषता के कारण वहाँ समा जाते हैं और बद्ध दशा में जिस जाति का बन्ध होता है उसके अनुसार अवगाह क्षेत्र लगता है। कोई बन्ध ऐसा होता है जो अनन्त परमाणुओं का होकर भी एकप्रदेशावगाही
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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