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________________ २०० तत्त्वार्थसूत्र [५. १. अनुसन्धान के समय वैज्ञानिकों का ध्यान इस प्रकार के तेजोवाही माध्यम की ओर गया था और उन्होंने उस समय आधुनिक वैज्ञानिकों ईथर में पौद्गलिक गुणों की कल्पना की थी। ईथर का मत में पौद्गलिक गुण आकार स्थापकत्व (rigidity ) आदि होते हैं इस सिद्धान्त के अनुसार यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रकाश तरंगों को विभिन्न दिशाओं में होनेवाली गति पर ईथर और पृथिवी की सापेक्ष गति ( relative mation ) के कारण प्रभाव पड़ना चाहिये। किन्तु माईकेलसन मार्ले के प्रयोग से यह स्पष्ट है कि प्रकाश तरङ्गों की गति पर इस प्रकार का कोई प्रभाव लक्षित नहीं होता। इससे स्पष्ट है कि ईथर पोद्गलिक नहीं है। प्रोफेसर एडिंग्टन ने 'नेचर ऑफ फिजिकल वर्ल्ड' पुस्तक में लिखा है कि 'आजकल ग्रह सर्वसम्मत है कि ईथर किसी भी प्रकार की प्रकृति ( matter ) नहीं है । तथा प्रकृति से भिन्न होने के कारण उसके गुण भी बिल्कुल विशिष्ट होने चाहिये । मात्रा ( mass ) और आकारस्थापकत्व (rigidity ) जैसे गुण भी उसमें नहीं होने चाहिये ।' प्रोफेसर मैक्सवॉनने 'रैस्टलैस यूनीवर्स' पुस्तक में पृष्ठ ११५ पर लिखा है कि 'माइकेल्सन मॉर्ले-प्रयोग और सापेक्षवाद के सिद्धान्त से यह स्पष्ट है कि ईथर साधारण पार्थिव वस्तुओं से भिन्न होना चाहिये। - क्षेत्र ( field ) का परिचय. न्यूटन ने विश्व की स्थिरता का कारण गुरुत्वाकर्षण (gravitation ) बताया था। इसके विषय में दो बातें थीं। प्रथम तो यह कि न्यूटन ने इसे सक्रिय शक्ति ( aclive force ) माना था। किन्तु सापेक्षवाद सिद्धान्त के आविष्कर्ता अलवर्ट आइन्स्टाइन ने यह सिद्ध कर दिया है कि गुरुत्वाकर्षण सक्रिय शक्ति नहीं है। दूसरी
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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