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________________ ३. १.-६.] लोक विचार १३७ मुटाई के परस्पर गुणा कर देने से ही उसका धनफल पा जाता है। चूंकि इसकी ऊँचाई और मुटाई सात सात राजु और चौड़ाई चार राजु है, अतः इनके परस्पर गुणा करने से १९६ घनराजु प्राप्त होते हैं। अधोलोक का घनफल भी इतना ही है। अर्व लोक का आकार इस प्रकार है। इसके मध्य में दोनों बाजुओं की ओर खड़ी हुई दो लकीरें समीकरण करने के लिये दी हैं। - इसमें भी पूर्व पश्चिम की बाजू दिखाई गई है उत्तर दक्षिण की बाजू नहीं दिखाई गई है। यह मध्य में पाँच राजु और नीचे व ऊपर एक एक राजु है अतः मध्य से इसके दो हिस्से करके दोनों का अलग अलग घनफल ला कर जोड़ देने पर ऊर्व लोक का कुल घनफल आ जाता है जो १५७ घनराजु होता है। घनफल लाने का क्रम वही है जो अधोलोक का घनफल लाने के प्रसंग से दे आये हैं। यह लोक के ऊपर का हिस्सा होने से ऊर्ध्वलोक कहलाता है । इससे अधोलोक लोक के नीचे का हिस्सा कहलाता है यह अपने आप फलित हो जाता है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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