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________________ १३६ तत्त्वार्थसूत्र [३. १.-६. चूंकि अधोलोक का मुख एक राजु और भूमि सात राजु है अतः इसका जोड़ आठ हुआ। फिर इसे आधा करके क्रमसे ऊँचाई व व मुटाई सात सात राजु से गुणा करने पर १९६ घनराजु आ जाते हैं। यह अधोलोक का घन फल है। समीकरण विधि जैसा कि अपर निर्देश कर आये हैं तदनुसार अधोलोक के चित्र में जहाँ बीच में खड़ी लकीर दी है वहां से इसके दो भाग करके दोनों भागों को उलट कर मिलाने पर उसका चित्र इस प्रकार प्राप्त होता है न emurenamman यह चार राजु चौड़ा, सात राजु ऊँचा और सात राजु मोटा है। चित्र में मुटाई नहीं दिखाई गई है केवल चौड़ाई और ऊंचाई दिखाई गई है। इस आकार में प्राप्त वस्तु की ऊंचाई या लम्बाई, चौड़ाई और
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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