SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३. १.-६.] लोक विचार १३५ यह सामान्य लोक का चित्र है । इसके बीचोंबीच एक राजु लम्बी व चौड़ी और चौदह राजु ऊँची त्रसनाली है। कुछ अपवादों को छोड़कर त्रस जीव केवल इसी में पाये जाते हैं इसलिये इसे सनाली कहते हैं। अधोलोक का चित्र इस प्रकार है। बीच में खड़ी लकीर इसके दो भाग करने के लिये दी गई है इसमें उत्तर दक्षिण की बाजू नहीं दिखाई गई है, क्योंकि वह सर्वत्र सात राजु है। केवल पूर्व पश्चिम की बाजू दिखाई गई है। यह - नीचे सात राजु और क्रम से घटते घटते सात राजु अपाला विचार की ऊँचाई पर एक राजु हैं। इसका घनफल १९६ धनराजु है। लम्बी, चौड़ी व ऊँची त्रिकोण वस्तु का धन फल लाने का क्रम यह है___ पहले मुख और भूमिको जोड़ कर इसे आधा करे। फिर ऊँचाई से गुणा करके मुटाई से गुणा करे। ऐसा करने से किसी भी कोणवाली वस्तु का घनफल आ जाता है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy