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१३० तत्त्वार्थसूत्र
[ २. ५३. किन्तु ऐसा होता नहीं, अतः इसी बात के बतलाने के लिये इस सूत्र की रचना हुई है।
इसमें बतलाया है कि उपपाद जन्म से पैदा होनेवाले देव, नारकी व चरमशरीरी और भोगभूमिया जीवों की श्रायु नहीं घटती । ये जीव भुज्यमान आयु का स्थिति घात नहीं करते यह उक्त कथन का तात्पर्य है। इससे यह भी निष्कर्ष निकल आता है कि इनके सिवा सब जीवों की आयु कम हो सकती है।
शंका-यदि उक्त जीवों के आयुकर्म का स्थिति घात नहीं होता तो न सही पर क्या इससे यह समझा जाय कि इनके आयु कर्म का अपकर्षण भी नहीं होता ?
समाधान-इनके आयुकर्म का अपकर्षण तो होता है पर उसका स्थिति घात नहीं होता।
शंका-अपकर्षण तो हो पर स्थिति घात न हो यह कैसे हो सकता है ?
समाधान- अपकर्षण दो प्रकार का होता है। एक तो स्थिति का धात हुए बिना मात्र कुछ कर्म परमाणुओं का होता है। इससे कर्मस्थिति के निषेक यथावत् बने रहते हैं। और दूसरा ऐसा होता है जिससे कर्मस्थिति का क्रम से घात हो जाता है। इसी को स्थिति घात कहते हैं। इन दोनों प्रकार के अपकर्षणों में से उक्त जीवों के आयुकर्म का प्रथम प्रकार का ही अपकर्षण होता है, अतः उनके आयुकर्म का अपकर्षण हो कर भी आयु कम नहीं होती।
शंका-एक ऐसा नियम है कि उदयागत कर्म परमाणुओं का अपकर्षण होने पर उनका निक्षेप उदयावलि में भी होता है जिस कि उदीरणा कहते हैं। इस नियम के अनुसार उक्त जीवों के भी आयुकर्म की उदीरणा प्राप्त होती है ?