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________________ २. ५३.] आयुष के प्रकार और उनके स्वासी १२९ होता है ? इन्हों दो प्रश्नों का उत्तर इस सत्र में दिया गया है। यद्यपि सूत्र में केवल इतना ही बतलाया है कि किन किन जीवों का अकाल मरण नहीं होता, पर इससे उक्त दोनों प्रश्नों का उत्तर हो जाता है। कर्मशास्त्र के नियमानुसार भुज्यमान आयु का उत्कर्षण नहीं हो सकता, क्यों कि उत्कर्षण बन्धकाल में ही होता है। उदाहरणार्थ -... किसी मनुष्य या तिथंचने प्रथम विभाग में नरकायु का एक लाख वर्ष प्रमाण स्थितिबन्ध किया। अब यदि वह दूसरे त्रिभाग में नरकायुका दस लाख वर्ष प्रमाण स्थितिबन्ध करता है तो उस समय वह प्रथम त्रिभाग में बाँधी हुई स्थितिका उत्कर्षण कर सकता है। उत्कर्षण का यह सामान्य नियम सब कर्मों पर लागू होता है। भुज्यमान आयु का बन्ध उमी पर्याय में होता नहीं, अतः उनका उत्कर्षण नहीं होता यह व्यवस्था तो निरपवाद बन जाती है। किन्तु अपकर्षण के लिये बन्ध काल का ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है। वह कुछ अपवादों को छोड़ कर कभी भी हो सकता है। जिल पर्याय में आयु का बन्ध किया है उस पर्याय में भी हो सकता है और जिल पर्याय में उसे भोग रहे हैं उस पर्याय में भी हो सकता है। उदाहरणार्थ-किसो मनुष्य ने तिर्यंचायुका पूर्व कोटि वर्षप्रमाण स्थिति बन्ध किया। अब यदि उसे स्थितिघात के अनुकूल सामग्री जिस पर्याय में आयु का बन्ध किया है उसी पर्याय में ही मिल जाती है तो उसी पर्याय में वह आयुकर्म का स्थितिघात कर सकता है और यदि जिस पर्याय में आयु को भोग रहा है उसमें स्थितिघात के अनुकूल सामग्री मिलती है तो उस पर्याय में आयु कर्म का स्थितिवात कर सकता है। स्थितिघात होने से आयु कम हा जाती है। ____ अपकर्षण के इस नियम के अनुसार सब जीवों की भुज्यमान आयु कम हो सकती है यह सामान्य नियम है। इस नियम के अनुसार सूत्र में निर्दिष्ट जीवों की सुध्यमान आयु कम हो सकती है।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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