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२. ५३.] आयुष के प्रकार और उनके स्वामी १३१
समाधान-अवश्य । पर यह उदीरणा स्थिति घात पूर्वक नहीं होती, इसलिये ऐसी उदीरणा के होने पर भी उक्त जीवों की आयु अनपवयं ही बनी रहती है।
शंका---यदि इन जीवों के आयुकर्म को निकाचित बन्धवाला माना जाय तो क्या हानि है ?
समाधान-इन जीवों का आयुकर्म निकाचित बन्धवाला भी हो सकता है और अनिकाचित बन्धवाला भी। यदि निकाचित बन्धवाला होगा तो पूर्वोक्त प्रकार से न अपकर्षण ही होगा और न उदीरणा ही। और यदि अनिकाचित बन्धवाला होगा तो पूर्वोक्त प्रकार से अपकर्षण और उदीरणा दोनों बन जायेंगे। हर हालत में आयु अनपवर्त्य ही रहेगी इतना विशेष है।
शंका-इन जीवों की भुज्यमान आयु किस प्रकार अनपवयं है यह तो समझ में आया पर जिस पर्याय में इस आयु का बन्ध होता है उस पर्याय में भी क्या यह अनपवयं रहती हैं ? ___ समाधान---यहाँ भुज्यमान श्रायु के विषय में व्यवस्था दी गई है वध्यमान आयु के विषय में नहीं। इसलिये उक्त जीवों की बध्यमान
आयु घट भी सकती है और बढ़ भी सकती है पर जब उसे देव, नारक, चरमशरीरी और भोगभूमिया पर्याय में आकर भोगने लगते हैं तब उसका बढ़ना तो सम्भव है ही नहीं। घटना सम्भव है, अतः इस सूत्र द्वारा इसी बात का निषेध किया गया है। इस द्वारा यह बतलाया गया है कि निमित्त को प्रमुखता से जैसे अन्य जीवों की आयु घट जाती है उस प्रकार इन जीवों की आयु नहीं घट सकती।
सूत्र में 'उत्तम' शब्द 'चरम' शब्द के विशेषणरूप से आया है। जिससे यह ज्ञात होता है कि तद्भव मोक्षगामी जीवों का शरीर उत्तम ही होता है। यदि उत्तम पद न रहे तो भी काम चल जाता है ।।५।।