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२.२५.-३०] अन्तराल गतिसम्बन्धी विशेष जानकारी १०९ हैं। अब यहाँ मुक्त जीव के कौन सी गति होती है यह बतलाया है। ऐसा नियम है कि मनुष्य सदा ढाई द्वीप और दो समुद्रों में पाये जाते हैं । ढाई द्वीप के बाहर इनका गमन नहीं होता। इस लिये मुक्ति लाभ इसी क्षेत्र से करते हैं। किन्तु जब यह जीव मुक्त होता है तो ऊपर लोकाय में चला जाता है। जिसे सिद्ध लोक कहते है । यह ठीक मनुष्य लोक के बराबर है न न्यून है और न अधिक, इस लिये मनुष्य लोक में जीव जहाँ मुक्त होता है वहाँ से वह सिद्धलोक के लिये सरल रेखा में चला जाता है। इस प्रकार प्रकृत सूत्रद्वारा मुक्तजीव की गति का नियम किया गया है।
शंका-'अविग्रहा जीवस्य' इस सूत्र में जीव से मुच्यमान जीव लेना कि मुक्त जीव ।
समाधान-कर्मों से छूटने के अनन्तर समय में जीव ऊर्ध्वगमन करता है इसलिये 'अविग्रहा जीवस्य' इस सूत्र में जीव से मुच्यमान जीव न लेकर मुक्त जीव लेना चाहिये, क्योंकि उस ममय जीव कर्मों से मुक्त रहता है ॥ २७ ॥
यों मुक्त जीवों की गति का विचार करके अब संसारी जीवों की गति का विचार करते हैं।
संसारी जीवों का उत्पत्ति स्थान सरल रेखा में भी होता है और वक्ररेखा में भी । जैसे आनुपूर्वी कर्म का उदय होता है उसके अनुसार
र उन्हें उत्पत्तिस्थान प्राप्त होता है। इसलिये संसारी संसारी जीवों की गति
___जीवों की ऋजु गति भी होती है और विग्रहगति भी।
- यदि उनका उत्पत्ति स्थान सरल रेखा में होता है तो ऋजुगति होती है और यदि उत्पत्तिस्थान सरल रेखा को भंग करके होता है तो विग्रह गति होती है । ऋजुगति का दूसरा नाम इषुगति भी है। इषु वाण का नाम है । धनुष से वाण के छोड़ने पर वह सरल जाता है। इस प्रकार जो गति सरल होती है उसे इपुगति कहते हैं।