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________________ २.१७ -२१.] इन्द्रियों की संख्या, भेद-प्रभेद, नाम निर्देश, विषय ९९ शंका-देवगति में वेदवैषम्य की प्राप्ति क्यों सम्भव नहीं? समाधान-देवों और देवियों के उत्पत्ति स्थान अलग-अलग हैं उनमें कभी मिश्रण नहीं होता। देव अपने उत्पत्ति स्थानों में जाकर उत्पन्न होते हैं और देवियाँ अपने उत्पत्ति स्थानों में जाकर उत्पन्न होती हैं। उत्पत्ति स्थानों के समान उनकी आहार वर्गणाएँ भी जुदी जुदी हैं। अर्थात् देवों के उत्पत्ति स्थानों में उनके शरीर के योग्य ही आहार वर्गणाएँ पाई जाती हैं, और देवियों के उत्पत्तिस्थानों में उनके शरीर के योग्य ही आहार वर्गणाएँ पाई जाती हैं। इनके आंगोपांग नामकर्म का उदय भी तदनुकूल होता है। यही सबब है कि देवगति में वेद वैषम्य नहीं होता। शंका-देवगति में वेदवैषम्य के कारण न होने से वहाँ इसका नहीं मानना ठीक है पर भोगभूमि की अवस्था तो देवगति से भिन्न है, अतः वहाँ इसके मान लेने में क्या आपत्ति है ? समाधान-भोगभूमि के प्राकृतिक नियमानुसार वहाँ प्रत्येक गर्भ स्थान में नर और मादा दोनों के शरीर के अलग-अलग उपादान एक साथ संचित होते हैं, इसलिये देवगति के समान नियमितपना होने के कारण वहाँ भी वेदवैषम्य का पाया जाना सम्भव नहीं है। शंका-सर्वत्र वेद के अनुसार आंगोपांग नामकर्म का उदय क्यों नहीं होता ? ___समाधान-वेद के उदय के निमित्त अन्य हैं और प्रांगोपांग के उदय के निमित्त अन्य। वेद का उदय भव के प्रथम समय में होता है और आंगोपांग का उदय शरीर ग्रहगा के प्रथम समय में होता है। इसलिये जहाँ दोनों की अनुकूलता सम्भव है वहाँ तो वेदसाम्य बन जाता है। किन्तु जहाँ यह अनुकूलता सम्भव नहीं है वहाँ नहीं बनता । यही सबब है कि सर्वत्र वेद के अनुसार आंगोपांग नामकर्म का उदय नहीं होता।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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