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तत्त्वार्थसूत्र [२.१७.-२१. इस प्रकार इतने विवेचन से यह सिद्ध हो जाता है कि जैसे वेदवैषम्य प्राप्त होता है वैसे इन्द्रियवैषम्य नहीं प्राप्त होता ॥१९॥ __ संसार में मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार के पदार्थ पाये जाते हैं। जिनमें, स्पर्श, रस गन्ध और वर्ण आदिधर्म पाये जाते हैं वे मूर्त हैं और शेष अमूर्त । यह पहले बतलाया जा चुका है कि मन के सिवा शेष क्षायोपशमिक ज्ञानों का विषय मूर्त पदार्थही है। यतः पाँचों इन्द्रियज्ञान क्षायोपशमिक हैं अतः उनका विषय मूर्त पदार्थ हो है। स्पर्शन इन्द्रियका विषय स्पर्श है, रसना इन्द्रिय का विषय रस है, घ्राण इन्द्रिय का विषय गन्ध है, चक्षुइन्द्रियका विषय वणं है और श्रोत्र इन्द्रियका विषय शब्द है। इस प्रकार यद्यपि पाँचों इन्द्रियों के विषय पाँच बतलाये हैं तथापि इनको सर्वथा भिन्न नहीं मानना चाहिये किन्तु ये एक ही पुद्गल द्रव्य की भिन्न भिन्न पर्याय हैं। उदाहरणार्थ एक मिसरी की डली है उसे पाँगों इन्द्रियाँ अपने अपने विषय द्वारा जानती हैं। स्पर्शनेन्द्रिय छूकर उसका स्पर्श बतलाती है, रसनेन्द्रिय चख कर उसका मीठा रस बतलाती है, घ्राणेन्द्रिय सूंघ कर उसका गंध बतलाती है, नेत्रेन्द्रिय देख कर उसका सफेद रूप बतलाती है और कर्णेन्द्रिय तोड़ने पर होनेवाले उसके शब्द को बतलाती है। ये स्पर्शादिक पुद्गल द्रव्य के धर्म हैं इस लिये उसे व्याप्त कर रहते हैं, क्यों कि अनेक गुणोंका समुदाय ही द्रव्य है इस लिये प्रत्येक गुण द्रव्य में सर्वत्र पाया जाता है। जैसे खिचड़ी में से दाल अलग की जा सकती है और चाबल अलग वैसे एक द्रव्य के विविध गुणों को अलग नहीं किया जा सकता है। हाँ बुद्धि द्वारा वे पृथक पृथक जाने जा सकते हैं अवश्य । पाँचों इन्द्रियाँ यही काम करती हैं। इन्द्रियों की शक्ति अलग अलग होने से वे पृथक पृथक् रूप से जानती हैं, इस लिये एक इन्द्रियका विषय दूसरी इन्द्रिय
चार गुणपर्याय हैं और शब्द व्यंजन पर्याय ।