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________________ २.१०..] जीवों के भेद ८९ दर्शनोपयोग के चार भेद हैं-चक्षुर्दर्शन, अचक्षुर्दर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन । चक्षु इन्द्रिय से जो दर्शन होता है वह चक्षुर्दर्शन है। चक्षु के सिवा अन्य इन्द्रिय और मनसे जो दर्शन दर्शनोपयोग के चार भेद * होता है वह अचक्षुदर्शन है। अवधिज्ञान के पहले - जो दर्शन होता है वह अवघिदर्शन है और केवलज्ञान के साथ जो दर्शन होता है वह केवलदर्शन है। शंका-अवधिदर्शन के समान मनःपर्ययदर्शन क्यों नहीं कहा ? समाधान-मनःपर्ययज्ञान के पहले अचक्षु दर्शन होता है इसलिये मनःपर्ययदर्शन नहीं कहा। शंका-विभंगज्ञान के पहले कौन सा दर्शन होता है ? समाधान-विभंगज्ञान के पहले अवधिदर्शन होता है। शंका-तो फिर अवधिदर्शन को चौथे गुणस्थान से क्यों बतलाया है ? समाधान-वह कथन अवधिज्ञान की प्रधानता से किया है। शंका-उक्त बारह प्रकार के उपयोगों में से कितने उपयोग पूर्ण हैं और कितने अपूर्ण ? ___समाधान-केवलज्ञान और केवलदर्शन ये दो उपयोग पूर्ण हैं और शेष उपयोग अपूर्ण। शंका-ज्ञानावरण और दर्शनावरण के नाश हो जाने पर स्वतन्त्र दो उपयोग मानने का क्या कारण है ? ___ समाधान-ज्ञान और दर्शन ये आत्मा के स्वतन्त्र दो धर्म हैं और इनके कार्य भी अलग अलग हैं, इसलिये आवरण कर्म के नष्ट हो जाने पर भी स्वतन्त्र रूप से दो उपयोग माने हैं ॥९॥ जीवों के भेद संसारिणो मुक्ताश्च ॥ १०॥ जीव दो प्रकार के हैं--संसारी और मुक्त ।
SR No.010563
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size39 MB
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