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ज्ञान होना सो भी आगमप्रमाण है । ऐसेंही उपमानप्रमाण भी आगमप्रमाणही है । बहुरि पूर्वै जादूँ देख्या था तथा बहुरि फेरि देख्या; तब जाणी " यहु पूर्वै देख्या सोही है ऐसा जानै " ताईं प्रतिभा कहिये सो प्रत्यभिज्ञान है, सो मतिज्ञानही है । याकै पूर्वं शब्द लगाये तब आगमप्रमाण है । बहुरि संभव अभाव अर्थापत्ति अनुमान ए सर्वही नामपूर्वक तो आगमप्रमाण है । विनां नाम मतिज्ञानरूप प्रमाण है । ऐसैं मतिज्ञान इरुतज्ञान ए दोऊ पूर्व सूत्रमै परोक्षप्रमाण कहे ते जानने ॥
आगें प्रत्यक्षप्रमाण कहनेयोग्य है । सो दोय प्रकार है, देशप्रत्यक्ष सकलप्रत्यक्ष । तहां देशप्रत्यक्ष अवधि मनःपर्यय ज्ञान है । सर्वप्रत्यक्ष केवलज्ञान है । तहां पूछे है जो ऐसे है तौ प्रथमही अवधिज्ञान तीन प्रकारके प्रत्यक्षवि आदि है सो कहिये ? ऐसे पूछ कहै है- अवधि दोय प्रकार है एक भवप्रत्यय दूसरा अयोपशमनिमित्तक । तहां भवप्रत्ययक्रं
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॥ भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणाम् ॥ २१॥ ___ याका अर्थ- भवप्रत्यय अवधि है सो देवनारकीनिकै होय है ॥ तहां पूछे हैं- भव कहा ? तहां उत्तर- आयु नामकर्मका उदयका है निमित्त जाळू ऐसा आत्माका पयाय सो भव कहिये बहुरि प्रत्यय नाम कारणका है । सो भव
है कारण ता• ताहि भवप्रत्यय कहिये । ऐसा अवधिज्ञान देवनारकी जीवनिकै होय है । इहा कोई पूछ है जो, ऐसे || र है तो क्षयोपशमनिमित्तपणां तिनकै न ठहया । आचार्य कहै है । ऐसा दोप इहां नाही आवै है । जातें भवके 18 का आश्रयतै इनिकै क्षयोपशम होय है । तातै प्रधानकारण है ऐसा उपदेश है । जैसें पक्षीनिकै गमन आकाशवि होय है तहां भवही प्रधान निमित्त है किसिका सिखाया नांही है। तैसें देवनारकीनिकै व्रतनियमतपश्चरणके अभाव होते
भी होय है, यातें भवप्रत्यय कहिये है । बहुरि भवप्रत्यय देवनारकीकही है अन्यकै नांही ऐसा नियम जाननां । जो ॥ ऐसें न होय तौ भव तौ सर्वजीवनिकै साधारण है । तब सर्वहीकै याकी प्राप्ति आवै । बहुरि अवधिकी हीनाधिकप्रवृत्ति 12 भी देखिये है । तातै यहु क्षयोपशमका विशेप है । बहुरि देवनारकी सर्वहीकै अवधि नाही कहिये । सम्यग्दृष्टिनि
हीकै अवधिज्ञान कहिये । जातें अवधि ऐसा सूत्र में ग्रहण है तातें मिथ्यादृष्टीनिकै विभंगअवधि कहिये । बहुरि इनिकै हीनाधिक अवधिका व्याख्यान अन्यशास्त्रनितें जानना ॥ ___ आगें दूसरा भेदकू कहै हैं--