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________________ वच निका अग्न्यादिक वस्तुकू प्राप्त हो है । तिस काल इरुतज्ञानतें इरुतज्ञानभया ऐसें कहतै आचार्य उत्तर कहै हैं । जो, यह दोष ।। नांही हैं । तिस इरुतज्ञानकै भी उपचारतें मतिपूर्वकपणांही कहिये । जाते इरुतज्ञानकै भी कोई ठिकाणै मतिहीका उपचार कीजिये है । जाते मतिपूर्वकही सोही श्रुतज्ञान भया है ऐसें जाननां । बहुरि सूत्रमैं भेदशब्द है सो जुदा जुदा कहनां दोय भेद भी है, अनेक भेद भी है बारहभेद भी है ऐसें । तहां दोय भेद तो अंगबाह्य अर अंगप्रविष्ट ऐसे हैं ॥ सर्वार्थ || सिद्धि || बहुरि अंगबाह्य तौ अनेकभेदरूप है । तिनिके नाम दशवकालिक उत्तराध्ययन आदिक ते चौदह प्रकीर्णक कहावै हैं; टीका तिनिके नाम- सामायिक । चतुर्विंशति स्तव । वंदना । प्रतिक्रमण । वैनयिक । कृतिकर्म । दशवकालिक । उत्तराध्ययन । पान कल्पव्यवहार । कल्पाकल्प । महाकल्प । पुंडरीक । महापुंडरीक । निषेधिका । ऐसें चौदह हैं। बहुरि अंगप्रविष्टके बारह भेद हैं। ID ते कौन सोही कहिये हैं । १ आचार । २ सूत्रकृत । ३ स्थान । ४ समवाय । ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति । ६ ज्ञातृधर्मकथा । । ७ उपासकाध्ययन । ८ अंतकृद्दश । ९ अनुत्तरोपपादिक दश। १० प्रश्नव्याकरण । ११ विपाकसूत्र । १२ दृष्टिवाद। ऐसे बारह ॥ १ तहां दृष्टिवादके भेद परिकर्म । सूत्र । प्रथमानुयोग । पूर्वगत । चूलिका ऐसे पांच ॥ तहां परिकर्मके भेद १ चंद्रप्रज्ञप्ति । २ सूर्यप्रज्ञप्ति । ३ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति । ४ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति । ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति बहुरि चूलिकाके पांच भेद । १ जलगता । २ स्थलगता । ३ मायागता । ४ रूपगता । ५ आकाशगता । ऐसे पांच ॥ बहुरि पूर्वगतके भेद चौदह । १ उत्पाद । २ अग्रायणी । ३ वीर्यप्रवाद । ४ अस्तिनास्तिप्रवाद । ५ ज्ञानप्रवाद । ६ सत्यप्रवाद । ७ आत्मप्रवाद । ८ कर्मप्रवाद । | ९ प्रत्याख्याननामधेय । १० विद्यानुवाद । ११ कल्याणनामधेय । १२ प्राणावाय । १३ क्रियाविशाल । १४ लोकबिंदुसार ऐसे चौदह है । ऐसें बारह अंग कहै ॥ तिनिके वीस अंक प्रमाण अपुनरुक्त अक्षर हैं । तिनिके पद एकसो बारह कोडि तियालीस लाख अठावन हजार पांच है । एक पदके अक्षर सोलासे चौतीस कोडि तियासी लाख सात हजार आठसे अठ्यासी हैं । प्रकीर्णकनिके अक्षर आठ कोडि एक लाख इक्यासीसे पचहत्तार है ॥ अर पूर्वनिकी उत्पत्ति ऐसे है । प्रथम पर्यायज्ञान अक्षरकै अनंतवै भाग सूक्ष्मनिगोद लब्धपर्याप्त जीवतें लगाय बधता बधता पर्यायसमास ज्ञान हो है। बहुरि अक्षरज्ञान, अक्षरसमासज्ञान, पदज्ञान पदसमासज्ञान, संघातज्ञान, संघातसमासज्ञान, प्रतिपत्तिज्ञान, प्रतिपत्तिसमासज्ञान, अनुयोगज्ञान, अनुयोगसमासज्ञान, प्राभृतज्ञान, प्राभृतसमासज्ञान, प्राभृतप्राभृतज्ञान, प्राभृतप्राभृतसमासज्ञान, वस्तुज्ञान, वस्तुसमासज्ञान, पूर्वज्ञान, पूर्वसमासज्ञान ऐसे वीस स्थानरूप पूर्वकी उत्पत्ति जाननी । बहुरि पूर्वके चौदह भेद कहे तिनिमें एकसो पिच्याणवै वस्तु हो हैं। अर एक एक वस्तुमैं वीस वीस प्राभृत कहै हैं । ते गुणतालीससे प्राभृत होय हैं । इनि अंग अर अंगबाह्यश्रुतके अक्षरनिकी तथा पदनिकी संख्या तथा
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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