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वच
पान
16/ स्पा -दूर तिष्ठ्या पदार्थकू विचारमैं ले है । यातै इनि दोऊनिकै व्यंजनावग्रह नाही हो है । बहुरि इहां कोई पूछ है, 11 BI जो, नेत्रकै अप्राप्यकारिपणां कैसें निश्चय कीजिये? ताका उत्तर- जो, आगमतें तथा युक्तिते निश्चय कीजि । प्रथम तौ शास्त्रमैं कह्या है, जो, शब्द तौ स्पर्शतें सुणिये है । बहुरि रूप है सो अस्पर्शते देखिये है । बहुरि गंध
स्पर्श रस ये स्पर्श तथा संधाणरूप भये जाणिये है । यहु तो आगम है । बहुरि यहु युक्ति है जो नेत्र है ते अप्राप्यसाथ
। कारी है, जातें यह स्पर्शकू नाही जानै है । जो प्राप्यकारी होय तो स्पर्शन इंद्रियकी ज्यों स्पा जो अंजन ताका सिद्धि
निका टीका रूपकू देख ले । सो अंजनका रूपकू नेत्र नाही जानै है। यातै मनकी ज्यौं नेत्र अप्राप्यकारी है ऐसा निश्चय कीजिये । अ. १ तातें नेत्र मन इनि दोऊविना अवशेष च्यारि इंद्रियनिकै व्यंजनावग्रह होय है । ऐसें या व्यंजनावग्रहके बहु आदि बारह
हा विषयकी अपेक्षा अठतालीस ४८ भेद होय हैं । ऐसैं अर्थावग्रहके २८८ मिलि मतिज्ञानके तीनसै छतीस ३३६ भेद होय र हैं । बहुरि नेत्रके अप्राप्यकारीकी विधिनिषेधकी चरचा विशेषकार श्लोकवार्तिकमैं है । तहांतें जाननी ॥ कोई कहै, जैसे
दूरतें जानै है तैसे शब्द भी दूरतें सणिये है। तातें अप्राप्यकारी कहै है। ताकू कहिये, ऐसें नाही है। जाते जिस ठिकाणते शब्द उपजै है तहांतें लगाय कर्णइंद्रियके प्रदेशताईके पुद्गल शब्दरूप होय जाय है, तब सुणिये है । ऐसेंही ३) गंधद्रव्य जहां तिष्ठै है तहांतें लगाय नासिका इंद्रियके प्रदेशताईके पुद्गल गंधरूप होय जाय हैं । ते सूंधिये हैं ऐसे कर्णइंद्रिय तथा घ्राणइंद्रिय प्राप्यकारी है। ऐसे नेत्र नाही हैं । यह अप्राप्यकारीही है ॥
आगें शिष्य पूछ है, जो, मतिज्ञान तौ स्वरूपते तथा भेदनिसहित कह्या । ताकै लगता श्रुतज्ञान कह्या है । ताका | अब लक्षण तथा भेद कहनेयोग्य है । ऐसें पूछे आचार्य सूत्र कहे हैं
॥ श्रुतं मतिपूर्व द्वयनेकद्वादशभेदम् ॥ २०॥ ___याका अर्थ- श्रुतज्ञान है सो मतिज्ञानपूर्वक है । बहुरि दोय भेदरूप है। ते दोय भेद अनेक भेदरूप तथा ! बारह भेदरूप हैं ॥ यहां यहु श्रुतशब्द है सो सुनने ग्रहणकरी निपजाया है । तो भी रूढिके वशतें कोईके ज्ञानका | विशेष है तामैं वतॆ है । भावार्थ, झानका नाम है । जैसें कुशल ऐसा शब्द है सो कुश जो डाभ ताकू छेदै ताकू ? कुशल कहिये । ऐसें व्युत्पत्तितें निपजाया है । तो भी रूढिके वशते प्रवीण पुरुषका नाम है तैसें जाननां । बहुरि यह ज्ञानविशेष कह्या सो कहा है ? ऐसे पूछ कहै हैं । ' श्रुतं मतिपूर्व ' कहिये श्रुत है सो मतिपूर्वक है । ऐसें श्रुतकै । प्रमाणरूप ज्ञानपणां है । जो पूरै उत्पत्ति करै ताकू पूर्व ऐसा कहिये । सो पूर्व ऐसा नाम निमित्तका भया जाळू