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सर्वार्थ
सिद्धि
टीका
अ. १
आगै इनि परोक्षनितै अन्य जे तीन ज्ञान तिनिकू प्रत्यक्ष कहने... सूत्र कहै हैं
॥ प्रत्यक्षमन्यत् ॥ १२ ॥ याका अर्थ- अन्यत् कहिये पांच ज्ञानमैं तीन ते प्रत्यक्षप्रमाण है ॥ · अक्षणोति' कहिये जानै सो अक्ष कहिये आत्मा
वचताहीकू आश्रयकरि उपजै अन्यका सहाय न चाहै ताकू प्रत्यक्ष कहिये । कैसा है आत्मा ? पाया है कर्मका क्षयोपशम
निका जानें । अथवा क्षीण हुवा है कर्मका आवरण जाका ऐसा आत्माकै होय है सो ऐसा अवधि मनःपर्यय केवलज्ञान है । पान कोई कहै ऐसे तो अवधिदर्शन केवलदर्शन भी है । आत्माहीका आश्रय ले उपजै है ते भी प्रमाण ठहरै । ताकू कहिये, यहू दोष न आवै है । इहां सूत्रमैं ज्ञानहीका अधिकार है। तातें ज्ञानही लेना, दर्शन न लेना । बहुरि कोई कहै, जो, विभंग तो ज्ञान है ताका प्रसंग आवैगा यह भी आत्माही• आश्रय ले उपजै है । ताळू कहिये इहां सम्यक्का अधिकार है, तातै विभंगज्ञान न लेनां । यहु विपर्ययस्वरूप है । जातें मिथ्यात्वके उदयनै विपरीतपदार्थकों ग्रहै है । ताते यह सम्यक् नाहीं ॥
इहां वैशेषिकका आश्रयतें प्रश्न है, जो, इंद्रियव्यापारतें होय सो प्रत्यक्ष कहिये । विना इंद्रियव्यापार होय सो परोक्ष कहिये । ये लक्षण यथार्थ बाधारहित है सो माननां । ताका उत्तर जो, यहु अयुक्त है । ऐसें होय तो आप्त सर्वज्ञकै प्रत्यक्षज्ञानका अभाव होय । जो इंद्रियज्ञानही प्रत्यक्ष मानिये तो आप्तकै प्रत्यक्षज्ञान न होय । जो आप्तकै भी इंद्रियपूर्वक ज्ञान कल्पिये तौ ताकै सर्वज्ञपणांका अभाव होय । जो कहै, सर्वज्ञकै मनसूं भया प्रत्यक्ष है तौ मनके चिंतवनपूर्वककै भी सर्वज्ञपणाका तौ अभावही आवैगा । बहुरि कहै, जो ताकै सर्वपदार्थनिके ज्ञानकी आगमतें सिद्धि हो है। सो ऐसैं भी नाहीं । जाते आगम तौ प्रत्यक्षज्ञानपूर्वक होय सो प्रमाण है ॥
बहुरि बौद्धमती कहै है योगीश्वरनिकै अलौकिक दिव्यज्ञान औरही जातिका है। तो ऐसें कहै प्रत्यक्षप्रमाण तौ ताकै न आवैगा । जाते ऐसा मानै है, जो इंद्रियप्रति वर्ते ताकू प्रत्यक्ष कहिये । सो ऐसा मान्यां तब दिव्यज्ञान कहनेते भी प्रत्यक्षपना तौ न ठहरै । बहुरि और भी दोष आवै है । जो सर्वज्ञका तौ अभाव होय है । अरु प्रतिज्ञाकी हानी होय है । सोई दिखाईये है। योगीश्वरकै जो ज्ञान है सो एक एक पदार्थकू क्रमतें ग्रहण करै है कि अनेकपदार्थका ग्रहण करनेवाला है ? जो एक एक पदार्थकों क्रमतें ग्रहण करै है; तौ सर्वज्ञपणां नाही ठहरै है । जातें ज्ञेय तौ अनंत है;
ज्ञ होय । बहुरि जो अनेक पदार्थकू ग्रहण करै है; तौ जो बौद्धमती प्रतिज्ञा करी है ताकी |