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________________ सर्वार्थ सिद्धि व चनि का पान ६ असंयतसम्यग्दृष्टिपर्यंत लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शे । अर आठ भाग देशोन चौदहमैसूं अर संयतासंयत लोकका असंख्यातवा भाग अर चौदह भागमैसूं पांच भाग देशोन स्पर्श । प्रमत्त अप्रमत्त संयत लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शे । शुक्ललेश्यावाला मिथ्यादृष्टि आदि संयतासंयतपर्यंत लोकका असंख्यातवा भाग अर चौदह भागमैसूं छह भाग | देशोन स्परौं । प्रमत्त आदि सयोगकेवलीपर्यतनिकै अर लेश्यारहितनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है ॥ भव्यके अनुवादकार भव्यनिकै मिथ्यादृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है । अभव्य || सर्वलोक स्पर्टी है ॥ सम्यक्त्वके अनुवादकरि क्षायिकसम्यग्दृष्टिनिके असंयतसम्यग्दृष्टि आदि अयोगकेवलीपर्यंतनिके गुणस्थानवत् स्पर्शन । है । विशेष यहु, जो, संयतासंयतनिका लोकका असंख्यातवा भागही है। क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टिनिका गुणस्थानवत् स्पर्शन है । औपशमिकसम्यक्त्ववालेनिका असंयतसम्यग्दृष्टीनिका गुणस्थानवत् है। अन्यका लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शन है । सासादनसम्यग्दृष्टि सम्यमिथ्यादृष्टीनिका गुणस्थानवत् स्पर्शन है ॥ 8 संज्ञीके अनुवादकरि संज्ञीनिका चक्षुर्दर्शनिवत् है। असंज्ञी सर्वलोक स्पर्शे हैं । तिनि दोऊनिकार रहितका गुणस्थानवत् स्पर्शन है ॥ आहारकके अनुवादकार आहारकनिका मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकपायपर्यंतनिका गुणस्थानवत् स्पर्शन है । सयोगकेवलीनिका लोकका असंख्यातवा भाग है । अनाहारकवि मिथ्यादृष्टि सर्व लोक स्पर्श है । सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग अर चौदह भागमैसूं ग्यारह भाग देशोन स्पर्श है । सो छठी पृथिवीतें मध्यलोकमैं उपजै, ताकै उत्पाद अपेक्षा तौ पाच राजू, अर अच्युतते मध्यलोकमैं आय उपजै, ताकै उत्पाद अपेक्षा छह ऐसें ग्यारह राजू कहे मारणांतिक अपेक्षा बारह राजू होय है । परंतु मारणांतिकमैं अनाहारक नाही । ताते उत्पाद अपेक्षा ग्यारह है । असंयतसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श है । अर चौदह भागमैसू छह भाग देशोन स्पर्श है। सयोगकेवली लोकका असंख्यातवा भाग अर सर्वलोक स्परौं है । अयोगकेवलीनिका लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शन है । ऐस स्पर्शनका व्याख्यान कीया ॥ | आगै कालका निरूपण करिये हैं । सो दोय प्रकार है । सामान्यकरि गुणस्थानविर्षे विशेषकर मार्गणानिवि । तहां सामान्यकारी मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा सर्वकाल है। एक जीवकी अपेक्षा तीन भंग है । अभव्यकै तौ अनादि अनंत है । भव्यकै अनादि सांत है, सादि सांत है। तहां सादि सांत जघन्य तौ अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट अर्द्धपुद्गलपरिवर्तन 90920000 रु
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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