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________________ +90930 वच निका टीका अ.१ क । वेदके अनुवादकरि स्त्रीपुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि लोककै असंख्यातवा भाग स्परौं है । अर चौदह भागमैसूं आठ भाग | नव भाग देशोन स्पर्श है । अथवा सर्वलोक भी स्पर्टी है । सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श है। अर चौदह भागमैसूं आठ भाग नव भाग देशोन स्पर्श है । सम्यमिथ्यादृष्टि आदि अनिवृत्तिबादरसांपरायपर्यतनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है। नपुंसक वेदविर्षे मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टीनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है । सम्यमिथ्यादृष्टीनिकै सार्य लोकका असंख्यातवां भाग है। असंयतसम्यग्दृष्टि संयतासंयत लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्शे है अर चौदह भागमैसूं छह सिद्धि भाग देशोन मारणांतिक अपेक्षा स्पर्श है। प्रमत्तसंयत आदि अनिवृत्तिबादरसांपरायपर्यंतवाले अर वेदरहितनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है ॥ कपायके अनुवादकरि च्यारि कषायवालेनिकै अर कपायरहितनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है। ज्ञानके अनुवादकार मतिअज्ञान श्रुतअज्ञानवाले मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टिनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है । विभंगज्ञानीकै मिथ्यादृष्टीनिकै असंख्यातवां भाग है। अर चौदह भागमैसूं आठ भाग देशोन है अर सर्वलोक भी है। सासादनसम्यग्दृष्टीनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है मति श्रुत अवधि मनःपर्यय केवलज्ञानीनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है ॥ संयमके अनुवादकरि सर्वसंयतनिकै अर संयतासंयतानिकै अर असंयतनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है। दर्शनके अनुवादकरि चक्षुर्दर्शनवाले मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकपायपर्यतनिकै पंचेंद्रियवत् स्पर्शन है । अचक्षुर्दर्शन- १ वालेनिके मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यतनिकै अवधिदर्शन केवलदर्शनवालेनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है ॥ लेश्याके अनुवादकार कृष्ण-नील-कापोतलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि सर्वलोक स्पर्श हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्परौं है । अर पांच भाग च्यारि भाग देशोन चौदह भागमैसूं स्पर्शे हैं । इहां कोई पूछ है, जो, बारह भाग क्यों न कहे ? ताका समाधान-जो नरकमैं अवस्थितलेश्या है । छठी पृथ्वीवाला मारणांतिक करै सो मध्यलोकमैं आवै पांच राजू स्पर्शे है । अर जिनिके मतमैं सासादनवाला एकेंद्रियविर्षे नाही उपजै, तिनिके मतकी अपेक्षा बारह भाग नांही कहै हैं । अर सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि लोककै असंख्यातवां भाग स्पर्श है । पीतलेश्यावाला मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवां भाग अर चौदह भागमैसूं आठ भाग नव भाग देशोन स्परौं है । सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग अर चौदह भागमैसूं आठ भाग देशोन स्पर्शी है । संयता| संयत लोकका असंख्यातवा भाग अर मारणांतिक अपेक्षा प्रथमस्वर्गका ड्योढ राजूताई स्पर्शी है । तातें अद्ध्यर्धदेशोन चौदह b भागमैसूं कह्या है । अर प्रमत्त अप्रमत्त संयत लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्शी है । पद्मलेश्यावाला मिथ्यादृष्टि आदि ।
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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