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सर्वार्थसिद्धि टीका म.
भयौ बोध तव कछु चिंतयो । करन वचनिका मन उमगयौ ॥ सव साधरमी प्रेरण करी। ऐसे में यह विधि उच्चरी RTI काल अनादि भरमत संसार । पायौ नरभव में शुभकार ॥ जन्म फागई लयौ सथानि । मोतीराम पिताकै आनि ॥ ११ ॥ पायौ नाम तहां जयचंद । यह परजाय तणूं मकरंद ॥ द्रव्यदृष्टि में देखू जवै । मेरा नाम आतमाकवै ॥ १२॥ गोत छावडा श्रादकधर्म । जामें भली क्रिया शुभकर्म ॥ ग्यारह वर्ष अवस्था भई । तब जिनमारगकी शुधि लही ॥ १३ ॥
निका आन इष्टिको ध्यान अयोगि । अपने इष्ट चलन शुभ भोगि ॥ तहां दूजौ मंदिर जिनराय । तेरापंथ पंथ तहां साज ॥१४॥
पान देवधर्म गुरु सरधा कथा । होय जहां जन भा यथा ॥ तव भो मन उमग्यो तहां चलो। जो अपनूं करनो है भलो ॥ १५ ॥
४१२ जाय तहां श्रद्धा दृढ करी । मिथ्या बुद्धि सबै परिहरी ॥ निमित पाय जयपुरमें आय । बडी जु शैली देखी भाय ॥ १६ ॥ गुणी लोक साधर्मी भले । ज्ञानी पंडित बहुते मिले ॥ पहले थे वंशीधर नाम । धरै प्रभाव भाव शुभ ठाम ॥ १७॥ टोडरमल पंडित मति खरी । गोमटसार वचनिका करी ॥ ताकी महिमा सवजन करें। वाचे पटै बुद्धि विस्तरै ॥१८॥ दौलतिराम गुणी अधिकाय । पंडितराय राजमैं जाय ॥ ताकी वुद्धि लसै सव खरी। तीन पुराण बचानका करी ॥ १९ ॥ रायमल्ल त्यागी गृहवास । महाराम व्रतशीलनिवास ॥ मैं हूं इनकी संगति ठानि । बुधि सारू जिनवाणी जानि ॥२०॥ लखे पुराण आदि उत्तरा । और पुराण चरित्र जु खरा ॥ गोमटसार लब्धि पण सार । क्षपणसार तिलोक सुसार ॥२१॥ टोडरमलकृत भाषा तणां । पाय सहाय संस्कृति भणा ॥ मूलाचार श्रावकाचार । लखे विचारे बुद्धि अनुसार ॥ २२ ॥ समयसार अध्यातमसार । प्रवचनसार रहसि मनधारि ॥ पंचासतिकाया ए तीनि । नाटक त्रयो कहावै वीन ॥ २३ ॥ तत्वारथसूत्रकी टीका । सर्वार्थ सिद्धि नाम सुठीका ॥ दूजी तत्वारथवार्तिका । श्लोकरूप वार्तिक तार्तिका ॥ २४ ॥ तिनको कछू कियो अभ्यास । वुद्धि जिसी जिम पायो ख्यास ॥ पद्दति न्यायतणी इनमाहि । सो भी कछू विचारी जाहि ॥२५॥ ग्रंथ परीक्षामुख संभलो । है प्रमाणको वर्णन भलौ ॥ देवागमस्तुति टीकासार । अष्टसहस्त्री नाम सुधार ॥ २६ ॥ आप्तपरीक्षादेखी सार । अर प्रमाणनिर्णय निरधार ॥ न्यायदीपिका सुगमप्रचार । सो पहले पढनेमें सार ॥ २७ ॥ देवसेनकृत गाथावंध । है नयचक्र बढौ अर बंध ॥ और ग्रंथ जिनमतमें घणे । पाये जेशुभविधिवश वणें ॥२८॥ ते भी कछु विचारे जबै । स्याद्वादमें समझे तबै ॥ नयप्रमाणकी कथनी महां । गुरुविन पार न पावै जहां ॥ २९॥ पै अभ्यास जोर बहु कियौ । बीजरूप सामान्य जु लीयौ ॥ और ग्रंथ बुधिसारू लखे। अपने मत परके मत अखे ॥३०॥ नंदलाल मेरा सुत गुनी । बालपनेते विद्या सुनी ॥ पंडित भयौ बढी परवीन । ताहूने प्रेरण यह कीन ॥३१॥ कोई ग्रंथ वचनिका करो । जामें सब समझें इम धरो। मैं हूं तबै विचारी एम । रची वचनिका यह धरि प्रेम ॥३२॥