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Lal च्यारिप्रकारही जानना । यह अविरतसम्यग्दृष्टि देशविरत प्रमत्तसंयत अर अप्रमत्तसंयत इनकै होय है ॥
इहां ऐसा जानना, जो, आज्ञा तौ सर्वज्ञकी वाणी है । अपाय मिथ्यात्वतै अपशरण करना है । कर्मका फल सो विपाक । लोकका आकार सो संस्थान । तहां आज्ञासामान्य चिंतवै तब एकरूप चिंतानिरोध होय अरु न्यारा न्यारा पदार्थकू आज्ञा प्रमाणकार चिंतवै तब न्यारा जानना ॥ ऐसेंही संस्थानवि भी सामान्य विशेप चितवन जानना । अर अपायविपाकमें न्यारान्याराही चितवनविर्षे चिंतानिरोध होय है ॥ बहुरि अविरतसम्यग्दृष्टि आदि तिनकै तौ गौणवृत्तिकार ध्यान है । अरु अप्रमत्तकै यह ध्यान मुख्य है । बहुरि अनुप्रेक्षा तो चितवनरूपही है । अरु जब एकाग्रचिंतानिरोध होय तब ध्यान कहिये है। ऐसे अनुप्रेक्षातें ध्यान जुदा जानना । बहुरि इहां कोई पूछे है, जो, मिथ्यादृष्टि अन्यमती तथा भद्रपरिणामी व्रतशीलसंयमादि तथा जीवनिकी दयाका अभिप्रायकरि तथा भगवानकी सामान्यभक्तिकरि धर्मबुद्धिते चित्तकू एकाग्रकार चितवन करै है, तिनकै शुभ धर्मध्यान कहिये कि नाही ? ताका समाधान, जो, इहां मोक्षमार्गका प्रकरण है । तातै जिस ध्यानतें कर्मकी निर्जरा होय सोही इहां गणिये है । सो सम्यग्दृष्टिविना कर्मकी निर्जरा होय नाहीं । मिथ्यादृष्टिकै शुभध्यान शुभबंधहीका कारण है । अनादित केईवार ऐसा ध्यानकार शुभ बांधै है, परंतु निर्जरा विना मोक्षमार्ग नाहीं । तातें मिथ्याष्टिका ध्यान मोक्षमार्गमें सराह्या नाहीं, ऐसा जानना ॥
वच निव | पान ૨૮૨
दिको
आगें तीनि ध्यानका तौ निरूपण किया अब शुक्लध्यानका निरूपण करना सो यह चारिप्रकार कहसी तिनमें आद्यके ६) दोयके स्वामीके निर्देशके अर्थि सूत्र कहै हैं -
. ॥ शुक्ले चाये पूर्वविदः ॥ ३७॥ ____ याका अर्थ- आद्यके दोय शुक्लध्यान पूर्वके जाननेवालेकै होय हैं । तहां कहेंगे जे च्यारि शुक्लध्यानके भेद तिनमें आदिके दोय ध्यान पूर्वका जाकू ज्ञान होय ताकै होय है। इहां पूर्वविदशब्दकरि श्रुतकेवली जानना । बहुरि सूत्रमें चशब्द है, ताकार एसा जानना, जो, श्रुतकेवलीकै धर्मध्यान भी होय है। जाते सूत्रके व्याख्यानतें विशेषकी प्रतिपत्ति होय ऐसा वचन है । तातें प्रमत्त अप्रमत्त गुणस्थानवति मुनि भी पूर्वके वेत्ता होय हैं। तिनकै धर्म्यध्यान भी। होय है । जात श्रेणीके चढने पहली तौ धर्म्यध्यान है। अरु श्रेणी चढै तब शुक्लध्यान होय है ऐसा व्याख्यान है ।। ताते च शब्दकार" श्रुतकवलीकै प्रमत्तअप्रमत्तविर्षे धर्म्यध्यान होय है, पैसा समुच्चय कीजिये ॥