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आगें ध्यानके भेद दिखावनेकू सूत्र कहै हैं
॥ आर्तरौद्रधर्म्यशुक्लानि ॥ २८ ॥ सर्वार्थ-RI
___ याका अर्थ- आर्त रौद्र धर्म्य शुक्ल ए च्यारि ध्यानके भेद हैं । तहां ऋतुनाम दुःखका है, अथवा अर्दन कहिये । वचसिद्धि
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पीडा बाधा तिसवि उपजै सो आर्त कहिये । रुद्र नाम रूर आशयका है, ताका कर्म तथा ताविर्षे उपजै सो ! रौद्र कहिये । धर्म पहला कह्या, सो तात सहित होय सो धर्म्य कहिये । शुचिगुणयोगते शुक्ल कहिये । आत्माका परिणाम कषायमलरहित उज्वल होय सो शुक्ल है । सो यह च्यारिप्रकार ध्यान है । प्रशस्त अप्रशस्त भेदतें दोयप्रकार है। तहां अप्रशस्त आत रौद्र हैं । सो तौ पापके आश्रवकू कारण हैं । बहुरि प्रशस्त धर्म्य शुक्ल है । सो कर्मके नाशकू कारण हैं ॥
पान ३७७
आगे कहै है, प्रशस्तध्यान कैसे हैं ताका सूत्र
॥ परे मोक्षहेतू ॥ २९॥ याका अर्थ- पर कहता अंतके दोय ध्यान हैं ते मोक्षके कारण हैं । तहां परशब्दत अंतका एक है ताके समीपते धर्म्यकू उपचारकार पर कहिये । जाते सूत्रमें द्विवचन है, ताकी सामर्थ्यते गौणका भी ग्रहण भया । ऐसें पर कहता धर्म्य शुक्ल ए दोय मोक्षके कारण हैं । प्रशस्त हैं इस वचनकी सामर्थ्यतेही पहले आर्त रौद्र दोऊ अप्रशस्त संसारके । कारण जानिये ॥ आगे आर्तध्यान च्यारिप्रकार है, तहां आदिके भेदका लक्षण कहने सूत्र कहै हैं
॥ आर्तममनोज्ञस्य सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः ॥ ३० ॥ याका अर्थ- अमनोज्ञवस्तुका संयोग होते तिसके वियोग करनेकू बार बार चितवन होय, चिंताका प्रबंध होय, सो । पहला आर्तध्यानका भेद है। तहां अमनोज्ञ नाम अप्रियका है। जो आपकू बाधाका कारण एसैं विप कंटक शत्रु शस्त्र होय, सो अमनोज्ञ है । तिसके संयोग होते मेरै, यह कैसे वियोग होय ? ऐसा संकल्प होय, सोही चिंताका प्रबंध ताकू स्मृतिसमन्वाहार कहिये । यह पहला आर्तध्यान कहिये ॥ आगें दूसरे भेदका लक्षणसूत्र कहै है--