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________________ सर्वार्थ निका आगे विनयके 'भेद कहनेकुं सूत्र कहै हैं ॥ ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः ॥ २३ ॥ याका अर्थ-ज्ञानका विनय, दर्शनका विनय, चारित्रका विनय, उपचारका विनय ऐसे विनयतपके च्यारि भेद हैं। सिदिइहां विनयका अधिकार है । तातै विनयशब्दका संबंध करना । यार्ते ज्ञानविनय दर्शनविनय चारित्रविनय उपचारविनय टीका ऐसे संबंध भया । तहां बहुमानसहित मोक्षके अर्थि ज्ञानका ग्रहण अभ्यास स्मरण इत्यादि करणा, सो ज्ञानविनय है ।। अ.९ बहुरि शंकादिदोपरहित तत्वार्थनिका श्रद्धान करना, सो दर्शनविनय है। वहरि ज्ञानदर्शनसहित होयकार चारित्रवि समाधानरूप चित्तकू कारण, सो चारित्रविनय है । बहुरि आचार्यआदि प्रत्यक्ष विद्यमान होय तिनकौं देखिकरि उठना तिनके सन्मुख जाना अंजली जोडना इत्यादि उपचारविनय तथा ते परोक्ष होय तो मन वचन कायकार हाथ जोड नमस्कार करना, गुणका स्तवन करना, स्मरण करना इत्यादि भी उपचारविनय हैं। याका प्रयोजन, जो, विनयतें ज्ञानका लाभ होय है, आचारकी शुद्धता होय है, भली आराधना होय इत्यादिकके अर्थ विनयकी भावना है ॥ ___ आगै वयावृत्त्यतपके भेदके जाननेकू सूत्र कहै हैं ॥ आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्षग्लानगणकुलसङ्घसाधुमनोज्ञानाम् ॥ २४ ॥ याका अर्थ- आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु, मनोज्ञ इन दशनिका वैयावृत्य करणा, ऐसे याके दश भेद हैं । इहां विशेपके भेदतें भेद जानने । तातें आचार्यवैयावृत्य इत्यादि कहना । तहां जिनसे व्रतआचरण कीजिये, ते आचार्य हैं । बहुरि जिनतें मोक्षके अर्थ प्राप्त होय शास्त्र पढिये ते उपाध्याय हैं । बहुरि महान् उपवास आदि तप करते होय, ते तपस्वी है । बहुरि जे शास्त्र पढनेआदि शिक्षाके अधिकारी होय, ते शैक्ष हैं। बहुरि रोगआदिकरि क्षीण होय, ते ग्लान हैं । बहुरि जे स्थविर कहिये बड़े मुनिनिकी परिपाटिके होय, ते गण कहिये । बहुरि दक्षिा देनेवाले आचार्य के शिष्य होय; तिनकं कुल कहिये । बहुरि च्यारिप्रकार मुनिनिका समूहकू संघ कहिये । बहार घणा कालका दीक्षक होय, सो साधु कहिये । बहार जो लोकमान्य होय सो मनोज्ञ कहिये । इनके रोग परिषह मिथ्यात्वादिका संबंध आवै तव अपनी कायचेष्टाकार तथा अन्य द्रव्य कार तिनका प्रतिकार इलाज करै, सो वैयावृत्य है। याका फल, जो, वैयावृत्यतै समाधिका तो धारण होय है, निर्विचिकित्साभाव होय है, प्रवचनका वात्सल्य होय है
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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