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॥ ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने ॥ १३ ॥ ___याका अर्थ- ज्ञानावरणकर्मका उदय होतें प्रज्ञा अज्ञान ए दोय परीषह होय है । इहां तर्क, जो, यह अयुक्त है । वार्थ- जातें ज्ञानावरणके उदय होते अज्ञानपरीषह तो होय अर प्रज्ञापरीपह तौ ज्ञानावरणके अभाव होते होय है । सो दोऊ ३ वचसिद्धि टीका K परीषह ज्ञानावरणके उदयतें कहना अयुक्त है । ताका समाधान, जो, यह प्रज्ञा है सो ज्ञानावरणके क्षयोपशमतें होय है । RIM भ. ९ सो परकै ज्ञानावरणका उदय होतें विज्ञानकला नाहीं होय तहां जाकै प्रज्ञा होय ताकै मद उपजावै है । अर सकल
आवरणका क्षय भये मद नाहीं होय है । तात ज्ञानावरणके उदयतें कहना बने है । इहां कोई कहै है, मद तौ अहंकार है सो मोहके उदयहीत होय है । ताका समाधान, जो, यह परीपह चारित्रवानकै ज्ञानावरणके उदयकी शक्तिकी अपेक्षा कही है । तातें मोहके उदयमें अंतर्भाव याका नाही, ज्ञानावरणहीकी मुख्यता लिये है ॥ आगें अन्य दाय कर्मके निमित्ततें भये परीपहकू कहै हैं
॥ दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ ॥ १४ ॥ याका अर्थ-- दर्शनमोहके होते तो अदर्शनपरीपह होय है । अर अंतरायकर्मके होते अलाभपरीषह होय है । इहां यथासंख्य संबंध करना । दर्शनमोहके होते अदर्शन परीषह, लाभान्तरायके होते अलाभपरीषह ऐसें ॥ आगै पूछे है कि, आदिका मोहनीयका भेदतें एक परीपह कया, बहुरि दूजा मोहनीयके भेद केते परीषह होय है ? 8 ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
॥ चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्काराः ॥ १५ ॥ __याका अर्थ- चारित्रमोहके होते नाग्न्य,, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचना, सत्कारपुरस्कार ए सात परीपह हो है, इहां पूछे है कि, पुरुषवेदके उदयआदिके निमित्तते नाग्न्यादिपरीषह होय हैं । इहां सो इनकै तौ मोहका निमित्तपणा हमने जाण्यां, परंतु निषद्यापरीषह तो आसनका परीषह होय है, याकै मोहके उदयका निमित्त कैसे ? ताका | समाधान, जो, आसनविर्षे प्राणीनिका परिहार प्रयोजन है । सो प्राणिनिकी पीडाके परीणाम · मोहके उदयतें होय है।