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होय, सो साधारण नाम है । बहार जाके उदयतें अन्य• प्यारी ला जाके उदयतें स्वर मनोज्ञ होय ...
पान
का एकही शरीर होय, सो साधारण नाम है । बहुरि जाके उदयतें द्वींद्रियादिविर्षे जन्म होय, सो त्रसनाम है । बहुरि जाके al
उदयतें एकेन्द्रियविर्षे उपजें, सो स्थावरनाम है । बहुरि जाके उदयतें अन्यकू प्यारी लागै, सो सुभगनाम है । बहुरि जाके
उदयतें रूप आदि सुंदरगुण होय, तौ अन्यकुं प्रीति न उपजै. सो दुर्भगनाम है । बहुरि जाके उदयतें स्वर मनोज्ञ होय, । सो सुस्वरनाम है । याते विपरीति बुरा स्वर होय सो दुःस्वरनाम है।
____ बहुरि जाके उदयतें शरीर रमणीक सुन्दर होय, सो शुभनाम है । याते विपरीति असुंदर होय, सो अशुभनाम है। निका टोका I
12 बहुरि जाके उदयतें सूक्ष्मशरीर निपजै, सो सूक्ष्मनाम है । बहुरि जाके उदयतें अन्यकू बाधा करै रोकै ऐसा शरीर उपजैन अ.८
1।३१८ । सो बादरनाम है । बुहार जाके उदयतें आहार आदि पर्याप्ति पूर्ण करै, सो पर्याप्तिनाम है । सो पर्याप्ति छह प्रकार है। R आहार, शरीर, इंद्रिय, श्वासोच्छ्रास, भाषा, मन ऐसैं । बहुरि जाके उदयतें छह पर्याप्ति पूर्ण न करै ऐसा अपर्याप्तिनाम 1] है । बहुरि जाके उदयते शरीरके अंगोपांग दृढ होय, सो स्थिरनाम है । यात विपरीति अस्थिरनाम है । बहुरि जाके
उदयतें प्रभासहित शरीर होय पैला सहारी न सकै, सो आदेयनाम है । प्रभारहित शरीर होय, सो अनादेयनाम है। बहुरि जाके उदयतें पवित्रगुण लोकमें प्रगट होय, सो यश-कीर्तिनाम है । बहुरि जाके उदयते छते गुण भी प्रगट न होय | सकै अवगुण प्रगट होय सो अयश-कीर्तिनाम है । बहरि जाके उदयतें अचिंत्यविभूतिविशेषसहित अरहंतपणा
पावै, सो तीर्थकरनाम है ॥ ___इहां कोई कहै, गणधर चक्रवर्ती आदि भी वडी विभूति पावै हैं, तिनकी प्रकृति क्यों न कहौ ? ताकू कहिये, जो, ऊच्चगोत्रादिकके उदयतें होय है । ताते न्यारे न कहे अर तीर्थकर होय हैं ते मोक्षमार्ग प्रवर्ताव है, यह फल चक्रवादिककै नाहीं है । तहां चौदह तो पिंडरूप प्रकृति हैं तिनके पैसठि भेद हैं । गति ४। जाति ५ । शरीर ५। अंगोपांग ३|| निर्माण २ । बंधन ५ । संघात ५ । संस्थान ६ । संहनन ६ । स्पर्श ८ । रस ५ । गंध २ । वर्ण ५। आनुपूर्व्य ४।। विहायोगति २ । ऐसे ६५। बहुरि प्रत्येक शरीर आदि १० प्रतिपक्षीसहित कही ते वीस अर आठ अगुरुलघु आदिक ऐसें । अठाईस अपिंडरूप हैं । ऐसें सब मिली तेरणवै प्रकृति जाननी । सूत्रमें इकतीसकें तौ न्यारी विभक्ति करी ते
प्रतिपक्षी जाननी । दशके सेतर पद दे न्यारी विभक्ति करी, ते सप्रतिपक्षी जाननी । तीर्थंकरकै न्यारी विभाक्त करी सो २ या प्रधानपणा जनावनेके अर्थि है ॥ 16 आगें, नामकर्मकी प्रकृतिनिके भेद तौ कहे अब याके अनंतर कह्या जो गोत्रकर्म ताकी प्रकृतिका भेद कहिये हैं