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पान
____ इहां कोई कहै है, जो, मत्यादिज्ञानकै आवरण कह्या सो ए ज्ञान सद्रूप है कि असद्रूप है ? जो सद्रूप है तो नो हा विद्यमान है ताकै आवरण काहेका ? अर जो असद्रूप है नौ विद्यमानही नाही, ताकै आवरण कै.नके कहिये ? ऐस: दोऊही पक्षमें आवरण बनें नाहीं । ताका समाधान, जो, इहां भी आदेशवचन जानना । द्रव्याथिकनयके आदेशतें तो सतकै आवरण कहिये । जैसे सदप आकाशकै मेघपटलका आवरण देखिये है, तैसें जानना । बहुरि पर्यायार्थिकनयके वच
निका आदेशकार असतकै आवरण कहिये । जाते उत्पत्तिका रोकनेवाला होय ताकू भी आवरणशब्दकार कहिये है। जो एकान्तकार सत्कै तथा असत्कै आवरण कहिये तो ज्ञानकै क्षायोपशमिकपणां बणे नाहीं । बहुरि ज्ञान कछु न्यारे । ३११ पदार्थ है नाहीं । आत्माके गुणपर्यायस्वरूप है । सो जब आवरण होय तब तिस पर्यायको व्यक्ति न होय सकै है । बहार जब आवरणका अभाव होय तब ज्ञानकी व्यक्ति प्रगट होय है । जैसे प्रत्याख्यानसंयमभाव न्यारा पदार्थ नाहीं | आत्माविही शक्तिरूप है । जेते प्रत्याख्यानावरणकर्मका सद्भाव होय तेतें तौ प्रत्याख्यान प्रगट न होय अर जब याका
आवरणका अभाव होय तब आत्माकै प्रत्याख्यानपर्यायकी व्याक्ति होय है; तैसे इहां भी जानना । ऐसें यह ज्ञानावरणकर्म है । याके उदयतें आत्माके जाननेकी सामर्थ्य हीन होय तब स्मरण नाही होय, धर्मश्रवण नाही होय, अज्ञानके २ वशर्ते अनेक दुःखनिकू भोगवै है ॥ ____आगें पूछे है कि, ज्ञानावरणकी उत्तरप्रकृतिका भेद तो कह्या, अब दर्शनावरण कर्मकी प्रकृतिका उत्तरभेद कहनेयोग्य है ऐसे पूछे सूत्र कहें हैं--
चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रानिद्रानिद्राप्रचलाप्रचलाप्रचालास्त्यानगृद्धयश्च ॥७॥ याका अर्थ- चक्षु, अचक्षु, अवधि केवल ए च्यारि तौ दर्शन, तिनका आवरणरूप च्यारि, प्रकृति बहुरि निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि ए पांच निद्रा ऐसें दर्शनावरणकर्मकी नव उत्तरप्रकृति हैं। तहां चच अचक्षे । अवधि केवल इनका आवरणकी अपेक्षाकरि भेद कहना, चक्षुर्दर्शनावरण अचक्षुर्दर्शनावरण अवधिदर्शनावरण केवलदर्शनावरण ऐसे बहुरि मद खेद ग्लानि इनके दूरि करनेकै अर्थि सोवना निद्रा है । बहुरि तिस निद्राका उपरि उपरि फेरिफेरि ।। आवना सो निद्रानिद्रा है । बहुरि जो आत्माकू सूतेही क्रियारूप चलायमान करै शोक खेद आदिकार उपजै बैठेकें भी नेत्र शरीर विक्रिया होय, सो प्रचला है । बहार सोही फेरिफेरि प्रवत सो प्रचलाप्रचला है । बहुरि जाकार सोवतैं भी | पराक्रम सामर्थ्य बहुत प्रगट होय सूताही उठि कछू कार्य करै फेरि सोवै यह न जानें · में कछु किया था ' सो ।