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सर्वार्थसिद्धि
टीका क्ष. ७
इस दशमी प्रतिमामें ताका भी त्याग है, घरका तथा अन्य कोई बुलावै ताकै भोजन करें, घर उदासीनवृत्ति रहै, कदाचित् घर बैठे कदाचित् मठ मंडप चैत्यालय आदिविषै बैठि निर्ममत्व रहै । बहुरि ग्यारमी प्रतिमामें घरका त्याग कर मुनिकी ज्यों मंडपमें रहै है, याका नाम उद्दिष्टत्यागप्रतिमा है । तहां अपने निमित्त किया भोजनादिकूं भी नाहीं अंगीकार करे है, यह उत्तमश्रावक है, जानना । बहुरि सारीही प्रतिमानिका स्वरूपका भावार्थ इहां संक्षेप लिख्या है । सो विशेषकथन श्रावकाचारग्रंथनितें एक कोपीन मात्र वस्त्र राखै है । बहुरि याका दूसरा भेद क्षुल्लक है, ताका स्वरूप श्रावकाचारतें जानना || आर्गै चशब्दकार समुच्चय कियाकूं कहै हैं
॥ मारणान्तिकीं सल्लेखनां जोषिता ॥ २२ ॥
याका अर्थ- मरणके अंतसंबंधी जो सल्लेखना ताहि सेवनेवाला भी यह श्रावक होय है । तहां अपने परिपाकक प्राप्त भया जो आयुकर्म ताका बहुरि इन्द्रियप्राण तथा बलप्राण इनका कारण के वशर्तें क्षय होना, सो मरण कहिये । ताका जो तिस भवसंबंधी अंत ताकूं मरणांत कहिये, सो मरणांत है प्रयोजन जाका सो मारणांतिकी कहिये । बहुरि भले प्रकार बाह्य तौ कायका तथा अभ्यंतर कषायका लेखना कहिये अनुक्रमतें तिनके कारणनिके घटावनेकारी कुश करना सो सल्लेखना कहिये । ऐसी मरणके अंतसंबंधी सल्लेखना ताहि जोषिता कहिये सेवनेवाला गृहस्थ श्रावक होय है । इहां कोई कहै है, जो, जोषिताशब्द कह्या सो सेविता ऐसा स्पष्ट प्रगट अर्थरूप शब्द क्यों न कह्या १ ताकूं कहिये, जो इहां सेविता न कहना, जातैं जोषिता कहने में अर्थका विशेष ब है । केवल सेवनाही न ग्रहण किया है । इहां प्रीतिका भी अर्थ है । प्रीति विना जोरीने सल्लेखना न करनी । सल्लेखना प्रीति होतें आपही करै है । तातें जोषिताशब्दमें प्रीति अरु सेवना दोऊ अर्थ हैं । बहुरि कोई तर्क करै है, जो यह हम मान्या, परंतु यामें आत्मघातकी प्राप्ति आवै है । तैं अपने अपने अभिप्रायपूर्वक आयुआदि प्राणनिकी निवृत्ति करे है । आचार्य कहै हैं, यह इहां दोष नाहीं । जातें इहां प्रमत्तयोग नाहीं है प्रमत्तयोग प्राणव्यपरोपणा करै सो हिंसा कही है सो याकै हिंसा नाहीं । जातैं रागादिदोषका या अभाव है । जो राग दोष मोहके वश होय, सो विषशस्त्रादि उपकरणनिकरि आपकूं घातै, ताकै आत्मघात होय
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है । तैसैं सल्लेखनामें नाहीं है । जातें इहां आत्मघातका दोप नाहीं है । इहां कनिकी उत्पत्ति न होना, सो अहिंसकपणां सिद्धांतमें कया है । बहुरि तिन निभगवानने का है ॥
उक्तं च गाथा है, ताका अर्थ- रागादिरागादिकनिकी उत्पत्ति, सो हिंसा है, ऐसें
वच
निका
पान
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