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ग साय./01
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पंच
अतीचारकी सोधना है, आरंभपरिग्रह अल्प होय है । पंचपापते बहु भयवान् है । परंतु प्रत्याख्यानावरणके तीव्रस्थानके उदय होतें सकलव्रत न बणै हैं, इत्यादि भावार्थ जानना ॥ __ आगें पूछ है कि, गृहस्थ अणुव्रतीका एतावन्मात्रही विशेष है, कि कछू और भी है ? सो ताके विशेपका सूत्र कहै हैं
दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवासोपभोगपरिभोगसिदि
निका परिमाणातिथिसंविभागव्रतसम्पन्नश्च ॥ २१॥ याका अर्थ- गृहस्थ अणुव्रती है, सो दिग्विरति देशविरति अनर्थदंडविरति ए तीनि तौ गुणव्रत हैं, बहुरि सामायिक ICE प्रोषधोपवास उपभोगपरिभोगपरिमाण अतिथिसंविभाग ए च्यारि शिक्षाव्रत इन सातव्रतनिकरि सहित होय है । इनकू सात Bा शील भी कहिये । इहां विरतिशब्द तो प्रत्येक लेनेत तीनि व्रत भये है । च्यारि सामायिक आदि व्रतही हैं, सोही
कहिये है । दिक् कहिये पूर्वआदि दिशा, तिनवि प्रसिद्धचिह्न पर्वत नदी ग्राम नगरादिक, तिन पर्यंत मर्यादा कार नियम | करै सो तौ दिग्विरतिव्रत है । यातें वाहिर प्रसथावर सर्वही प्राणीनिका घातके अभावते याकै महाव्रतपणाका उपचार है। तिस वाहर लाभ होतें भी परिणाम चलै नाहीं । ताते लोभकपायका निरास होय है । बहुरि दिशाके परिमाणविपैं भी l कालकी मर्यादा की सापेक्षात मर्यादा करै, जो, इस महीनामें तथा पक्षमें तथा इस दिनमें अपने घरमेंही रहना है, तथा !
इस नगरमेंही रहूंगा, तथा फलाणा वाडा तथा बाजार हाटताईकी मर्यादा है इत्यादि प्रतिज्ञा करै सो देशविरतिव्रत है। 18 इहां भी जेता देशकी मर्यादा करी तातै बाहिर हिंसादिके अभावते महाव्रतपणाका उपचार है ।।।
__बहुरि जिसते कछु अपना परका उपकार नाही अर अपने परके नाश भय पापका कारण ऐसा जो कार्य सो अनर्थदंड है, तिसते रहित होना, सो अनर्थदंडविरतिव्रत है । सो यहू पंचप्रकार है, अपध्यान पापोपदेश प्रमादाचरित हिंसाप्रदान अशुभश्रुति ऐसैं । तहां परके जय, पराजय, वध, बंधन, अंगछेदन, सर्वधनका हरण इत्यादि कैसे होय ऐसैं मनकरि चितवना; सो तो अपथ्यान है । बहुरि क्लेशरूप तिर्यग्वणिज प्राणिवधका तथा हिंसाका आरंभ आदिक पापसंयुक्त वचन कहना, सो पापोपदेश है । वहुरि प्रयोजन विना भूमिका कूटना, जलका सींचना, वृक्षका छेदना आदि अवध
कहिये पाप, ताका कार्य सो प्रमादाचरित है । बहुरि विष, लोहके कांटा, शस्त्र, अग्नि, जेवडा, कोरडा, चावका, दंड आदि ' हिंसाके उपकरणका देना, सो हिंसाप्रदान है । बहुरि हिंसा तथा रागादिककी बधावनहारी खोटी कथा तिनका सुनना सीखना प्रवर्तन करना, सो अशुभश्रुत है ॥
पान
वहारणता देशकी मर्यादाकाणा वाडा तथा वाला महीनामें तथा पानिरास होय है । वडाकै महावतपणाकार करि नियम ।
मनकरि चितवनामश्चति ऐसें । तहां परके नवदंडविरतिव्रत है । सो यह
ककककककक
"सीखना अवतरणका देना, सो हिंसाप्रदान है । बहुरि विप, लोहके कांटा, शक, सींचना, वृक्षका छेदना
पापसंयुक्त ।