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सर्वार्थ
सिदि
॥ अधिकरणं जीवाजीवा : ॥७॥ याका अर्थ- आश्रवका अधिकरण जीवद्रव्य अजीवद्रव्य ऐसे दोयभेद लिये है । तहां जीव अजीवका लक्षण पहले कह्या तेही हैं । इहां अधिकरणविशेष जनावनेकू फेरि नाम कहे हैं। सो अधिकरण हिंसाआदिका उपकरणपणां है ।।
। इहां कोई कहै, जीव अजीव मूलपदार्थ दोयही हैं । तातें सूत्रमें द्विवचन चाहिये । ता• कहिये, ऐसें नाहीं है । इहां निका टीका है। अधिकरणसामान्य नाहीं है । जीव अजीवके पर्याय अधिकरण हैं । तातै जिसतिस पर्यायसहित द्रव्य बहुतप्रकार हैं। पान भ.६१ तातें बहुवचन है । सो यह अधिकरण आश्रवका है ऐसा संबंध अर्थके वशते सूत्रमें कारण ॥
२५० ___ आगे जीवाधिकरणके भेद जाननेके अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैत्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ॥८॥
याका अर्थ-- आदिका जीवाधिकरण है, सो संरंभ समारंभ आरंभ ए तीनि बहुरि मन वचन काय योग तीनि, कृता कारित अनुमोदना ए तीनि, क्रोध मान माया लोभ कषाय च्यारि ए एक एकप्रति देना ऐसा परस्पर गुणे एकसौ आठ भेदरूप है । तहां प्रमादी जीवकै हिंसाआदिकेविर्षे प्रयत्न कहिये उद्यमरूपपरिणाम सो संरंभ है । बहुरि हिंसाके कारणका
अभ्यास करना सामग्री मिलावणी सो समारंभ है। प्रक्रम कहिये आरंभ करणा सो आरंभ है । ऐसें ए तीनि भये । 8] बहुरि योगपूर्वै कहेही । मन वचन काय भेद लिये तीनि । बहुरि कृत कहिये आप स्वाधीन होय करै सो, कारित
कहिये परकने करावै सो, अनुमत कहिये पैला करै, तात आप मन वचन कायकार भला जाने ऐसे तीनि । बहुरि क्रोध मान माया लोभ ए च्यारि कपाय इनका लक्षण पूर्व कह्या सोही ऐसें । विशेषशब्द इन सनिक संबंध करणा । संरंभविशेष समारंभविशेष इत्यादि । जाकरि अर्थकू अन्य अर्थ लेकरि जुदा कीजिये सो विशेषशब्दका अर्थ है। ऐसे आदिका जीवाधिकरण है, सो एते विशेपनिकरि भेदरूप कीजिये है । बहुरि त्रिआदि च्यारि शब्द हैं, ते सुचप्रत्ययान्त हैं, ते यथानुक्रम संबंधकार लेने । संरंभादि तीनि, योग तीनि, कृत आदि तीनि, कपाय च्यारि इन गणतीकी रीति सुच्प्रत्ययकार जाणिये है । बहुरि एकशः शब्दकरि वीप्स्या कही है। एक एकप्रती तीनि आदि भेद प्राप्त करने, सोही कहिये हैं। क्रोधकृतकायसंरंभ, मानकृतकायसंरंभ मायाकृतकायसंरंभ, लोभकृतकायसंरंभा, क्रोधकारितकायसंरंभ, मानकारितकायसंरंभ, मायाकारितकायसंरंभ, लोभकारितकायसंरंभ, क्रोधानुमतकायसंरंभ, मानानुमतकायसरंभ, मायानुमतकायसंरंभ लोभानुमत