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________________ आगें शिप्य कहै है, जो, तीनिप्रकार याग कहे ते हम जाने, परंतु प्रकरण आस्रवका है, सो अब कही, आस्रवका लक्षण कहा है ? ऐसे पूछे कहै हैं, जो, यह योगशब्दकरि कहिये सो संसारी जीवकै आस्रव है ऐसा सूत्र कहै हैं सर्वार्थ वचनिका पान २४५ ॥स आस्रवः ॥ २ ॥ याका अर्थ- कह्या जो योग सो आस्रव है । जैसे सरोवरके जल आवनेका द्वार होय सो जलके आवनेकू कारण सिद्धि टीका हैं, ताईं आस्रव ऐसा कहिये, तैसें इहां भी योगद्वारकरि आत्माकै कर्म आवै है, तातें योगही आस्रव है । ऐसा नामके । योग्य है । इहां ऐसा भी दृष्टांत जानना- जैसे ओला वस्त्र चौगिरदतै आई रजकू ग्रहण करै है तथा लोहका पिंड अग्निकरि तपाये जलत ढंचै है, तैसें कपायनिकार सहित जीव योगद्वारकार आये कर्मळू सर्व अपने प्रदेशनिकार ग्रहण | करै है॥ आत्माके प्रदेशनिका चलना सो योग है । सो निमित्तके भेदतें तीनिप्रकार भेद कीजिये है, काययोग, वचनयोग, मनोयोग । तहां आत्माके वीर्यातरायकर्मका क्षयोपशम होतें औदारिक आदि सात काय तिनकी वर्गणामें एक कायवर्गणाका अवलंबनकी अपेक्षातें भया जो आत्मप्रदेशनिका चलना, सो काययोग है । बहुरि शरीर नामा नामकर्मके हृदयकरि किया जो वचनवर्गणा ताका अवलंबनके होते, बहुरि वीर्यातरायकर्म तथा श्रुत अक्षर आदि ज्ञानावरणकर्मका क्षयोपशमकरि किया जो अभ्यंतर वचनकी लन्धि कहिये बोलनेकी शक्ति ताकी संनिधि होते, वचनपरिणामके सन्मुख भया जो आत्मा ताके प्रदेशनिका चलना, सो वचनयोग है। बहुरि अभ्यंतर तो नोइन्द्रियावरण नामा ज्ञानावरणकर्म अर अंतरायकर्मके क्षयोपशमरूप लब्धि ताका निकट होते, अर बाह्य मनोवर्गणाका अवलंबन होते मनःपरिणामके सन्मुख जो आत्मा ताकें प्रदेशनिका चलना, सो मनोयोग है ॥ | आगै प हैं, जो, कर्म पुण्यपापभेदकार दोयप्रकार है, तिसका आस्रवका कारण योग है सो अविशेषकरिही है, कि कुछ विशेप है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं-- ॥ शुभः पुण्यस्याशुभः पापस्य ॥३॥ याका अर्थ-- शुभयोग तौ पुण्यका आश्रव करै है। अशुभयोग पापका आश्रव करै है । तहां शुभयोग कहा ? अशुभयोग कहा ? सो कहिये हैं। प्राणनिका घात अदत्तका ग्रहण मैथुनसेवन इत्यादिक तौ अशुभका योग है । झट बोलना कठोरवचन कहना ऐसें असत्यवचन आदि अशुभ वचनयोग है । परका घातका चितवन करना, ईर्षा राखनी,
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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