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________________ सर । सर्वार्थ- गुणहीकरि यी म // न्यारे दक्षि हैं आदि गुणनिकार न्याग न होय तो व्यनिका रूप होय जुदा दीखै तिसर वच हा अन्यून कहिये सहित द्रव्य है सो कैसा है ! अयुतप्रसिद्ध है संयोगरूप नाहीं, तादात्मक स्वरूप है बहुरि नित्य है। अपने विशेषलक्षणकू कबहूं नाहीं छोडै है ॥ ___ इहां ऐसा कह्या, जो, द्रव्य है सो अन्यद्रव्यतें जाकरि विशेषरूप होय जुदा दीखै तिस भावकू गुण कहिये । तिस । गुणहीकरि द्रव्यकी विधि है, जो ऐसा गुण न होय तो द्रव्यनिका संकर कहिये पलटना ठहरै । जैसे जीव हैं सो पुद्गलादिक द्रव्यनितें ज्ञानआदि गुणनिकार न्यारा दीखै है । बहुरि पुद्गल आदि द्रव्य हैं, ते जीवद्रव्यतॆ रूप आदि गुणनिकरि निका टीका न्यारे दीखै हैं । जो ऐसा विशेषगुण न होय तो आपसमें पलटना तथा एकता ठहरै । तातें सामान्य अपेक्षाकरि । पान अन्वयी तौ ज्ञान आदि जीवके गुण हैं । बहुरि पुद्गल आदिके रूप आदि गुण हैं । बहुरि तिनके विकारतें विशेषरूप- २३८ करि भेदरूप भये ते पर्याय हैं। जैसे घटका ज्ञान पटका ज्ञान क्रोध मान इत्यादि जीवके पर्याय । बहुरि वर्ण गंध 18 तीव्र मंद इत्यादि पुद्गलके पर्याय । बहुरि तिनतें कयंचित् अन्यपणाकू प्राप्त होता समुदाय है, सो द्रव्यनाम पावै है ।। जो समुदाय तिन गुणपर्यायनितें सर्वथा अनांतरभूत होय जुदा पदार्थ न गिनिये, तो सर्वहीका अभाव होय, सोही कहिये है ॥ । जो परस्पर भिन्न भिन्न लक्षणस्वरूप गुणपर्याय तिनका समुदाय होते एक अनयांतरभावतें समुदाय जुदा पदार्थ न मानिये तो सर्वका अभाव होय । जाते ते गुणपर्याय परस्पर न्यारे न्यारे पदार्थ हैं । सो जो प्रत्यक्षरूप गुण हैं, ताते ।। जुदे पदार्थ रस आदिक हैं, सो जो समुदाय तिस रूपसूं जुदा न ठहरै, रूपमात्र समुदाय ठहरै, तब रस आदिक रूपते न्यारे हैं । तिनतें समुदाय भी न्यारा भया । तब एकरूपमात्र रहनेते समुदाय न ठहरै । समुदाय तो बहुतनिका होय, रूप तो एकही है । समुदाय काहेदूं कहना ? ऐसे समुदायका अभाव आया । याहीते समुदायी सर्वही समुदायतें जुदे नाही, तिनका भी अभाव आया । ऐसें समुदाय समुदायी दोऊका अभाव होते सर्वका अभाव आया । ऐसें रस 1) आदिकवि भी जोडना | तातें समुदायकू जो चाहै है सो गुणपर्यायनिके समुदायरूप जो द्रव्य ताईं कथंचित् संज्ञा ।। | संख्या लक्षण प्रयोजनादिकी अपेक्षा न्यारा पदार्थ मानना योग्य है ॥ I इहां प्रश्न, जो, द्रव्यका लक्षण सत् ऐसा पहले तो कह्याही था, यह दूसरा लक्षण कहनेका कहा प्रयोजन है ? ताका I उत्तर, पहलै सत् लक्षण कह्या, सो तौ शुद्धद्रव्यका लक्षण है, सो एक है, सो सामान्य है, अभेद है, या महान् द्रव्य भी कहिये, जाते सर्व वस्तु है सो सत्ताकू उल्लंधि नाहीं वर्ते हैं । सर्वद्रव्य सर्वपर्याय सत्ताके विशेषण हैं । जाकू ज्ञान-1 2 गोचर तथा वचनगोचर कहिये सो सर्व सत्तामयी है । बहुरि द्रव्य अनेक है, तिनका भिन्नव्यवहार करनेकू यह गुण) हैं, सो जो समुदाय पोय परस्पर न्यारे का एक अनांतरभावते रूप तौ एकतिनत समुदाय भी न्यारा भवाय तिस रूपसू जुदा नारे न्यारे पदार्थ हैं । सोजी समुदाय जुदा पदार्थ न । el नाही, तिनका भी । समुदाय काहेर्दू कहना ! तब एकरूपमात्र रहनेते समरूपमात्र समुदाय ठहरै, तवरूप गुण हैं, तातें । संख्या लक्षण प्रयोजना । तातें समुदाय समुदाय समुदाया का अभाव आया । याहार । समुदाय तोख आदिक रूपते ।
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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