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________________ आगे पूछ है कि, सत्कै अनेकनयके व्यवहारका आधीनपणा है । तातें स्कंधनिकै भेदसंघाततै उत्पत्ति बणै है परंतु यह संदेह रह्या, जो, दोय परमाणुके आदिका संघात हौय है । सो संयोगमात्रतेही होय है, कि कोई और विशेप है ? ऐसे पूछै कहै है, जो, संयोग होते एकत्वपणारूप बंधनितें संघातकी निष्पत्ति होय है। फेरि पूछे है, जो, ऐसे है तौ पुद्गल जातिकू छोडै नाहीं, अरु संयोग होयही, तब कोई परमाणुनिकै तौ बंध होय, बहुरि अन्य केईकै न सिद्धि । होय, सो याका कारण कहा ? ताका समाधान जो, तिन परमाणुनिकै पुद्गलस्वरूपकरि अविशेष है, तो अनंतपर्यायनिकै टी का परस्परविलक्षणपरिणामकार सामर्थ्य होय है, तातें बंध होय है ऐसे, प्रतीतिमें आवै है। याका सूत्र कहै हैं सर्वार्थ वच निका पान म.५ २३४ ॥ स्निग्धरूक्षत्वाद्वन्धः ॥ ३३ ॥ याका अर्थ- स्निग्ध कहिये सचिक्कण रूक्ष कहिये लूखा इन दोऊपणातें पुद्गलपरमाणुनिकै परस्पर बंध होय है । तहां बाह्य अभ्यंतर कारणके वशते सचिक्कणपर्यायका प्रगट होना सो स्निग्ध है । तैसेंही रूक्ष है । ऐसे स्निग्धरूक्षपणा है । जो सचिक्कणगुणपर्याय होय सो तौ स्निग्धपणा है । तिसतै विपरीतपरिणाम होय सो रूक्षपणां है। दोऊनिकू हेतुकरि कह्या है । ऐसें बंध होय है । सो जहां दोय परमाणु सक्ष तथा सचिक्कण परस्पर मिलें तब बंध होते दोय अणुका स्कंध होय है । ऐसेंही संख्यात असंख्यात अनंत परमाणुनिका स्कंध उपजै है। तहां परमाणुनिमें रूक्ष सचिक्कण गुण कैसे हैं ? सो कहिये है- एकगुण स्निग्ध दोय गुण स्निग्ध तीनि गुण स्निग्ध च्यार गुण स्निग्ध संख्यातगुण स्निग्ध असंख्यातगुण स्निग्ध अनंतगुण स्निग्ध ऐसे अनंतभेदरूप हैं । ऐसेंही रूक्षगुण भी जानना । ऐसें रूक्ष सचिक्कणगुण परमाणु हैं। जैसे जल छेलीका दूध गऊका भैंसीका दूध ऊंटनिका दूध तथा घृतविर्षे सचिक्कणगुण घाटि बधिकार प्रवर्ते है; तथा पांशु कहिये धूली कणिका कहिये वालु रेत शर्करा कहिये काकराकी जिमी इत्यादिवि रूक्षगुण घाटि बाधि है; तैसेंही परमाणुनिविर्षे स्निग्धरूक्षगुणकी घाटि बाधि प्रवृत्ति है, ऐसा अनुमान है । इहां एक दोय गुण १ कहनेतें गुणनिके अविभागपरिच्छेद जानने ॥ कक आगें स्निग्धरूक्षगुण है निमित्त जाळू ऐसा बंध है, सो अविशेषकार होता होयगा, ऐसा प्रसंग होतें जिनकै बंध नाहीं होय है, तिनके निपेधा सूत्र कहै हैं
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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