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________________ वच पान ३ खुली तथा बंधीका अवगाह है । बहुरि च्यारि आदि संख्यात असंख्यात अनंतके स्कंधनिका भी है । ऐसें च्यारि । आदि संख्यात लोकाकाशके प्रदेश हैं, तहांताई भाज्यरूप पुद्गलनिका अवगाह जानना ॥ | इहां प्रश्न, जो अमूर्तिक द्रव्यनिका तौ एकक्षेत्रविर्षे अवगाह अविरोधरूप होय बहुरि मूर्तिकद्रव्यकै कैसें अविरोधरूप होय? ताका समाधान, इन मूर्तिकद्रव्यनिके भी अवगाहनशक्ति है । तथा सूक्ष्म परिणमन ऐसा होय है, तातै विरोध । सद्धि नाही 12 नाहीं । जैसे एक घरमें अनेक दीपकनिका प्रकाश समावै तैसें जाननां तथा आगमप्रमाणकार जानना । इहां उक्तं च गाथा निका का ा है, ताका अर्थ- यह लोकाकाश है, सो सूक्ष्म बादर जे अनंतानंत अनेक प्रकारके पुद्गलद्रव्य, तिनकरि सर्वप्रदेशम ५ निविर्षे जैसे गा. खूदि खूदि भरै तैसें संचयरूप भरै है । ऐसाही द्रव्यस्वभाव है सो स्वभावविर्षे तर्क नाहीं ॥ बहुरि २१६ | इहां कपासपिंडका दृष्टांत है ॥ आगें जीवनिका कैसे अवगाह है ? ऐसे पूछै सूत्र कहै हैं-- ॥ असंख्येयभागादिषु जीवानाम् ॥ १५ ॥ याका अर्थ- लोकका असंख्यातवां भाग आदिवि जीवनिका अवगाह है । इहां लोक शब्दकी तो अनुवृत्ति है। | तिस लोकका असंख्यात भाग कीजे, तामें एकभाग... असंख्यातवां भाग कहिये । तिसकू आदि लेकर लोकपर्यंत २ जानना । सोही कहिये हैं, एक असंख्यातवां भागवि एकजीव तिष्ठै ऐसे दोय भाग, तीनि भाग चारि भाग इत्यादि | असंख्यात भागविपैं सर्वलोकपर्यंत एकजीवका अवगाह जाननां । संख्यातके संख्यात भेद हैं । तातें असंख्यातवां भागके भी प्रदेश असंख्यातही जानने । बहुरि नानाजीवनिका सर्वलोकही है । इहां प्रश्न, जो, एक असंख्यातवां भागमें एक जीव तिष्ठै तौ द्रव्य प्रमाणकरि जीवराशि अनंतानंत हैं, ते शरीरसहित कैसे लोकवि तिष्ठै ? ताका समाधान, जो, सूक्ष्म वादरके भेदतें जीवनिका अवस्थान जाननां ॥ तहां बादर तो परस्पर सप्रतीघातशरीर हैं, जिनका शरीर परस्पर रुकै हैं । बहुरि सूक्ष्म है ते शरीरसहित हैं तो भी सूक्ष्मभावतें एकनिगोदजीवकार अवगाहने योग्य जो क्षेत्र तावि- साधारण | शरीरसहित अनंतानंतजीव वसैं हैं, ते परस्पर भी अरु बादरजीवनितें भी व्याघातरूप न होय हैं, तातें अवगाहविर्षे विरोध नाहीं। आगें प्रश्न, जो, एकजीव लोकाकाशके प्रदेशनिकै तुल्य असंख्यातप्रदेशी है । सो सर्वलोकमें व्याप्ति चाहिये, लोकाकाशके असंख्यातवां भाग आदिवि अवगाह कैसे कह्या ? ऐसे पूछ सूत्र कहें हैं *००
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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