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छप्पय । देव च्यारि परकार भेदयुत भापे स्वामी ।
तिनके वीस निवास अधो मध्य ऊरध नामी ॥ तिन दुति सुख पर अपर आयु परभाव अवधि फुनि । लेश्या भाव विच्यारि आदि नीकै आगम सुनि ।। अध्याय तुरिय इम उच्चन्यौ जानि जिनेश्वर सेवकू ।
सरधो भलै तजि मिथ्यात्वकुटेवकू ॥१॥ ऐसे तत्त्वार्थका है अधिगम जाते ऐसा जो मोक्षशास्त्र तावि चतुर्थ अध्याय पूर्ण भया ।
१ वचनिका पान
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इति श्री परमपूज्य धर्मसाम्राज्यनायक योगींद्रचूडामणि, सिद्धांतपारंगत, चारित्रचक्रवर्ति श्री १०८ आचार्य श्रीशांतिसागरजी महाराजके आदेशसे ज्ञानदानके लिए श्री. प. पू. चा. च. आ. श्री १०८ शांतिसागर दिगंबर जैन जीर्णोद्धारक संस्थाकी ओरसे छपी हुई श्री तत्त्वार्थसूत्रकी श्रीमत्पूज्यपादाचार्य विरचित सर्वार्थसिद्धीकी पंडित जयचंदजीकृता टीका
वचनिकाविपै चतुर्थ अध्याय संपूर्ण भया ॥ ४ ॥ ग्रंथ प्रकाशन समिति, फलटण वीर स. २४८१
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