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वच
निका
पान
। वैडूर्य कहिये नीलवर्ण, रजत कहिये श्वेत, हेम कहिये पीत ऐसे वर्णमय हैं ॥ जे ए कहे हिमवत् आदि कुलाचल ते ।
अनुक्रमते हेमादिकमयी जानने । तहां हेममय तौ हिमवान् है, सो पीला पाटसारिखा वर्ण है । बहुरि अर्जुनमय महाहिमवान् है, सो शुक्ल है । बहुरि तपनीयमय निषध है सो दुपहरीके सूर्यके वर्णसारिखा है । बहुरि वैडूर्यमय नील है, ||
सो मोरके कंठसारिखा है ॥ बहुरि रजतमय रुक्मी है, सो शुक्ल है । बहुरि हेममय शिखरी है, सो पीले पाटसारिखा वर्ण है। सर्वार्थसिद्धि
आगै इनिका फेरि भी विशेषके अर्थि सूत्र कहै हैं-- टी का ॥ मणिविचित्रपाश्र्वा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ॥ १३ ॥
१५७ याका अर्थ- इनि कुलाचलनिके पसवाडै तौ मणिनिकरि चित्रित हैं । बहुरि मूलतें ले ऊपरितांई समान चौडे हैं। अनेकवर्ण अरु प्रभाव कहिये महिमा इत्यादि गुणनिकार सहित जे मणि तिनिकरि विचित्रित हैं पार्श्व कहिये पसवाडे जिनिके ऐसे हैं । बहुरि आकार जिनिका मूलन लगाय मध्य तथा ऊपरिताई समान है, चौरस भीतिकी ज्यों बराबर है। आगै तिनि कुलाचलनिके ऊपरि हद हैं ते कहिये हैं
॥ पद्ममहापद्मतिगिंछकेसरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका हृदास्तेषामुपरि ॥ १४ ॥ याका अर्थ-- तिनि हिमवत् आदि कुलाचलनि ऊपरि अनुक्रमतें पद्म महापद्म तिगिंछ केसरी महापुण्डरीक पुण्डरीक | ए ह्रद जानने ॥ आर्गे आदिका जो पद्मद ताका आकारविशेषकी प्रतिपत्तीकै अर्थि सूत्र कहै हैं
॥प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्द्धविष्कम्भो हृदः ॥ १५॥ याका अर्थ- पद्मद है सो पूर्वपश्चिम दिशातें तौ हजार योजन लंबा है। बहुरि उत्तर दक्षिण दिशाने पांचसै योजनका विस्तार है । बहुरि वज्रमय याका तल है । बहुरि अनेक प्रकारके मणि तथा सुवर्ण तथा रजत तिनिकर विचित्रित जाका तट है ॥ "
आगें याका अवगाह कहिये ऊंडाई जाननेकै अर्थि. सूत्र कहै हैं