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पृथिवी नीचे चलीही जाय है, अवस्थित नाही । सो भी कहना बन नाही । इत्यादि अनेक कल्पना करै हैं, सो असत्य है । इहा कोई पूछै, तुमने कह्या ताकी प्रमाणता काहेते करै ? ताकू कहिये, हमारा कहनां सर्वज्ञके आगमकी परंपराते
निर्वाध है, तहां स्याद्वादन्यायकरि युक्तिते भी सिद्ध है। याकी चरचा श्लोकवार्तिकमें विशेप करी है। तहांतें जाननी ॥ सर्वार्थ-12
o आगै पूछे है, कि ए भूमि हैं तिनिमें नारकीनिके सर्वत्र आवास हैं, कि कहूं कहूं है ? ऐसे पूछ ताके निर्धारकै सिदि अर्थि सूत्र कहै हैं
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॥ तासु त्रिंशत्पञ्चविंशतिपञ्चदशदशत्रिपञ्चोनैकनरकशतसहस्राणि पञ्च चैव यथाक्रमम् ॥२॥
याका अर्थ- तिनि भूमिनिविपै अनुक्रमते तीस लाख पचीस लाख पंदरा लाख दश लाख तीन लाख पांच घाटि एक लाख अरु पाच एते नरक कहिये विला हैं । ते रत्नप्रभादिक भूमि तिनिविर्षे इस संख्याकरि नरक कहिये बिला गिणिये । तहां रत्नप्रभावि तीस लाख है । गर्कगप्रभावि4 पचीस लाख हैं । वालुकाप्रभावि पंदग लाख है । पंकप्रभाविपें दस लाख हैं। धूमप्रभाविप तीन लाख है । तमःप्रभावि पांच घाटि एक लाख हैं । महातमःप्रभावि पांचही हैं ॥ बरि रत्नप्रभावि तेरह प्रग्तार हैं तिनिकं पायडा कहिये हैं। वहरि आगै दोय दोय घाटि है । तहा दूसर ग्यारा, तीसरै नव, चौथै सात, पांचवे पांच, छैट तीन, सातवै एक ऐमै प्रस्तार जानने । बहुरि इनि भूमिनिका अन्य विशेप लोकनियोगशास्त्रत जानना ॥
इहा कछ विशेष लिखिये हैं । तहां रत्नप्रभावि अन्बद्दलभागवि ऊपरि नीचे हजार हजार योजन छोडि वीचिमें विला है । ते इंद्रक, श्रेणीवंध, प्रकीर्णक ऐसे तीन प्रकार हैं । तहां तेरह प्रस्तार है। तहा तेरहही वीचि वीचि इंद्रक हैं। तिनिके नाम सीमंतक, सीर, पगम्क, भ्रात, उड़ांत, संभ्रांत, असंभ्रांत, विभ्रात, तप्त, वन्त, व्युत्क्रांत, अवक्रांत, विक्रांत ऐसे नाम हैं । बहुरि शर्कगप्रभावि ग्यारह प्रस्तार हैं । तिनिमें ग्यारहही बीचिवीचि इंद्रक है । तिनिके नाम स्तनक, संस्तनक, वनक, घाट, संघाट, जिव्ह, उन्निव्हिक, आलोल, लोलुक, स्तन, आलोलुक ऐसें । बहुरि वालुकाप्रभावि नव प्रस्तार हैं । तिनिमें नव इंद्रक तिनिकै नाम तप्त, वस्त; तपन, आतापन, आदिदाय, प्रज्वलित, संज्वलित, उज्वलित, संप्रज्वलित ऐस । बहुरि पंकप्रभावि4 सात प्रस्तार हैं। तिनिमें सात इंद्रक तिनिके नाम आर, मार, तार, वर्चस, वैमनस्क, खाट, आखाट ऐसे । बहुरि धूमप्रभावि पांच प्रस्तार हैं तहां पाच इंद्रक हैं । तिनिके नाम तम, अभ्र, झप, अंत,तमिस्र ऐसै । बहुरि तमःप्रभावि तीन प्रस्तार हैं । ताविप तीन इंद्रक है । तिनिके नाम हिम, वर्दल, लल्लक ऐसै । बहुरि महातमःप्रभा-2