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आगें कालपरिवर्तन कहिये हैं। कोई जीव उत्सर्पिणी कालकै पहले समय उपज्या अपनी आयु पूरी भये मूवा । बहुरि सोही जीव दूसरे उत्सर्पिणी कालकै दूसरे समय उपज्या फेरि आयु पूर्णकार मूवा । बहुरि सोही जीव तीसरे उत्सपिणी कालकै तीसरे समय उपज्या । ऐसही सोही जीव चौथे उत्सर्पिणी कालकै चौथे समय जन्म्यां । ऐसेंही अनु
क्रमतें दशकोडाकोडीसागरके उत्सर्पिणीकालके समयनिविपैं निरंतर जन्म लेवो किया वीचिबीचिमैं विना अनुक्रमतें सर्वार्थ- और और समयनिमें जन्म लिया सो न गिणिये । बहुरि ऐसेही अवसर्पिणी कालकै समयनिविर्षे जन्म लिया । ताके भी
नि का टीका ऐसैही दशकोडाकोडिसागरके समय बीतै । बहुरि जैसे जन्म लिया तैसैही मरण तिनि समयनिविर्षे अनुक्रमतें करै तहां
पान म २
जेता कछ अनंतानंतकाल बीते ताकू एक कालपरिवर्तन कहिये । इहां उक्तंच गाथा है ताका अर्थ- यह जीव कालपरि- १२१ वर्तननामा संमारविर्यै भरमता उत्सर्पिणी अवसर्पिणीके समयनिकी पंक्तिविर्षे अनेकवार जन्म लिया तथा मरण किया तामैं कोई समय अवशेप न रह्या ऐसें रम्या ॥
आगें भवपरिवर्तन कहिये है। नरकगतिवि सर्व जघन्य आयु दशहजार वर्षकी है । तिस आयुकं पाय तहां प्रथम नरककै पहलै पाथडै उपज्या । पीछै अन्यगत्यादिवि4 भरमण करते फेरि कोई कालविर्षे तिसही आयुकं पाय तिसही पाथडै उपज्या । ऐसेंही दशहजार वर्पके समय होय तेती बार तो तिसही आयुसहित तहाही उपजवो किया । बीचिमै अन्य जायगा उपज्या सो न गिणिये । पीछे एकसमयाधिक दशहजार वर्षकी आयु पाय उपज्या । पीछे दशहजार वर्ष दोय समयाधिककी आयु पाय उपज्या । इसही अनुक्रमकरि तेतीस सागरकै समय जन्मते तथा मरणतै पूर्ण करै । अनुक्रमरहित बीचिबीचि अन्यगति तथा आयुकरि उपजै तो ते न गिणिये ऐसे रमतें बहुरि तैसेंही तिर्यचके गतिवि३ जघन्य आयु अंतर्मुहूर्तकी पाय उपज्या । पहले अनुक्रमकी ज्यों इहां भी तीन पल्य प्रमाण आयुके समयनिविर्षे अनुक्रमते उपजै मरै । बहुरि तैसेंही मनुष्यगतिकी तीन पल्यकी आयुके समयनिविर्षे अनुक्रमतें उपजै मरै । तैसेंही देवगतिकी आयु वेयकनिकी इकतीस सागरताईकी आयुके समय तिनिवि तहां उपजै मरै जेता अनंतानंतकाल बीतें ताळू एक भवपरिवर्तन कहिये । इहां उक्तंच गाथा है ताका अर्थ- यहु जीव भवपरिवर्तन नाम संसारवि मिथ्यात्वकरि सहित हुवा संता नरककी जघन्य आयुत लगाय ग्रैवेयकनिकी उत्कृष्ट आयुपर्यंत अनेकवार भवनिकी स्थिति आयु पाय पाय भरम्या है ॥
आगें भावपरिवर्तन कहिये हैं । तहां जीवके परिणाम भाव कहिये। सो कोई जीव संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तक मिथ्याहा दृष्टि ज्ञानावरणकर्मकी प्रकृतिकी अपने योग्य जघन्यस्थिति अंतःकोटाकोटी कहिये कोडाकोडीसागरकै नीचे कोडीकै 11
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