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सर्वार्थ
वच
टीका
ही परिवर्तन, क्षेत्रपारवर्तन, कालपरिवर्तन, भवपरिवर्तन, भावपरिवर्तन ऐसे पाच प्रकार । तहां द्रव्यपरिवर्तन दोय प्रकार, एक हा
नोकर्मपरिवर्तन दूसरा कर्मपरिवर्तन । तहां नोकर्मपरिवर्तन कहिये है । तीन शरीर छह पर्याप्तिकै योग्य जे पुद्गलपरमाणूके स्कंध एक जीवने एकसमयवि ग्रहण किये ते स्निग्ध रूक्ष वर्ण गंध आदि तीव्र मंद मध्यमभावकार जैसै तिष्ठते द्वितीयादिक समयवि खिरै बहुरि द्वितीयादिक समयविर्षे विना ग्रहे परमाणू अनंतवार ग्रहण करै तिनिकू उल्लंधिकरि बहुरि पहलै ग्रहे थे तिनिमैके गृहीत भी बहुरि नवे ग्रहण करै ते भी दोऊ मिले ग्रहण कर तिनिकं मिश्र कहिये । ते भी
निका अनंतवार अनंतवार ग्रहण करे तिनिकू उल्लंधिकरि बहुरि बीचिमैं गृहीत ग्रहे थे ते गृहीतग्रहण होते जाय ते अनंतवार पान ग्रहणमैं आवै तिनिकू उल्लंधिकरि जामें जे पहले समय परमाणू ग्रहे थे तेही तैसैही स्पर्शादिके अविभागपरिच्छेदनिकी १२० संख्या लिये तथा तितनेही परमाणूकू लिये समयप्रवृद्ध ग्रहण करै ऐसे होतें जो काल भया तब एक नोकर्म-10 द्रव्यपरिवर्तन हो है ॥
बहुरि कर्मद्रव्यपरिवर्तन कहिये है। तहां एकसमयवि एक जीव अष्टविध कर्मभावकरि जे पुद्गल ग्रहण किये ते समय अधिक आवलीमात्र काल पीछे द्वितीयादिक समयवि निर्जरारूप भये फेरि पहलै कह्या तिसही विधानकरि अगृहीत गृहीत मिश्र अनंतबार ग्रहण करते जब कोई समय ऐसा होय तामैं पहले समय तिसही जीव जैसे स्पर्शादिकके अविभागपरिच्छेदकी संख्याकू लिये तितनेही समयप्रवृद्धमें आय जाय तब तितनाही काल एककर्मद्रव्यपरिवर्तनका होय है । ऐसें द्रव्यपरिवर्तन कहिये । इहा गाथा उक्तंच है ताका अर्थ- इस पुद्गलपरिवर्तनरूप संसारविर्षे इस जीवनें सर्वही पुद्गल निश्चयकरि. अनंतबार अनुक्रमते ग्रहण करि करि छोडै है ॥
आगें क्षेत्रपरिवर्तन कहिये है । कोई जीव सूक्ष्म निगोदिया अपर्याप्तक सर्व जघन्य अवगाहनारूप प्रदेश शरीरकू पाइ इस लोकवि मध्यके आठ प्रदेशनिकू अपने शरीरकै मध्यदेशकरि उपज्या । पीछे क्षुद्रभवकी आयु स्वासकै अठारहवै भाग मया । वहुरि सोही जीव तिसही अवगाहनाकरि फेरि उपजिकार मूवा । ऐसेंही तीसरी बार चौथी बार इत्यादि अपने शरीरके घन अंगुलकै असंख्यातवै भाग असंख्यात प्रदेश है तेतीही बार उपजवो किया । बीचिमें अन्य अवगाहना तथा अन्य क्षेत्रमै अनंतवार उपजवो किया ते गिणिये नाही । बहुरि ऐसे एक एक प्रदेश वधता सर्वलोकके क्षेत्रकू परसिकरि अनुक्रमतें उपजै अनुक्रमविना उपजै सो न गिणिये। ऐसें सर्व लोक अपना जन्मक्षेत्र करै ताकू जेता कछु अनंतकाल वीतै ताकू एक क्षेत्रपरिवर्तन कहिये । इहा उक्तंच गाथा है । ताका अर्थ- इस क्षेत्रसंसारवि भ्रमता यहु जीव सो अनंत अवगाहनारूप शरीरकू पाय इस सर्वलोकके क्षेत्रवि अनुक्रमते उपज्या तहां ऐसा क्षेत्र न रह्या जहां न उपज्या ।।