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सिद्धि
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भया । बहुरि जब स्त्रीपर्याय पाई तब चोटी पाई । तब मीडक भी वही जीव था स्त्रीपर्यायमैं आया तब पूर्वपर्यायकी का अपेक्षा स्त्री मंड्रक कहै याकै चोटी कहिये तो दोष नाही । तैसेंही आकाशके फूलके दृष्टांतके भी बणै है । जाते कर्मके उदयतें जीव वृक्ष भया । तब जीवपुद्गलके समुदायकू फूल ऐसा नाम कहिये । ऐसें पुद्गलद्रव्यतें फूल व्याप्त है तैसेंही आकाशतें भी व्याप्त कहिये ॥
वचकी इहां कहै, जो, वृक्षरूप पुद्गलकृत उपकारकरि वृक्षका फूल कहिये है तहां कहिये आकाशका किया अवगाहन
निका
पान उपकारकी अपेक्षा आकाशका फूल कहिये तो कहां दोप ? वृक्षतें तो छूट भी है । आकाशमैं तौ सदा रहै तातें नित्यसंबंध है । बहुरि कहै, फूल आकाशते जुदी वस्तु है, तातें आकाशका न कहिये । ऐसें तौ वृक्षतें भी जुदा पदार्थ है, तातें वृक्षका भी न कहिये इत्यादि युक्तिते दृष्टात भी वणता नाही । ताते कारणके अभावतें आत्माका अभाव मानिये तब यह तो बणे नाही । बहुरि अनवस्थित उपयोगकै लक्षणपणाका अभाव कहै, सो चैतन्यका परिणाम ज्ञेयाकार परिणमैही है । सामान्य उपयोग तौ नित्यही रहै है । याहीतें भेदाभेदात्मक वस्तुका स्वरूप निर्वाध सिद्ध है । बहुरि कहै, जो, आत्मा प्रत्यक्ष नाही, तातै अभाव मानिये । तहां कहिये, शुद्ध आत्मा तौ सकलप्रत्यक्ष केवलज्ञानगोचर है। बहुरि कर्मनोकर्मबंधसहित आत्मा अवधि मनःपर्यय ज्ञानकै भी गम्य है । बहुरि कहै, इंद्रियप्रत्यक्ष नाही, तातै अप्रत्यक्ष है । इंद्रियज्ञान तौ परोक्ष है । बहुरि मानसप्रत्यक्षगम्य कहिये है, सो यह भी व्यवहारनयतै सिद्ध हो है । परमार्थतें मानसप्रत्यक्ष परोक्षही है । ऐसेंही अन्यवादीनिकरि कल्पित आत्माका अभाव साधनेके हेतु ते बाधासहित जानने जाते आत्मा प्रतीतिसिद्ध है । वहुरि याका लक्षण उपयोग है सो प्रतीतिसिद्ध है। याकी विशेष चरचा श्लोकवार्तिक तथा तत्त्वार्थवार्तिकतें जाननी ॥
इहां कोई पूछे, पूर्व जीवका स्वतत्त्व भाव कह्या वहरि लक्षण कया, सो स्वतत्त्व अरु लक्षणमैं कहा विशेष है? ताका समाधान, जो, स्वतत्त्व तो लक्ष्य आत्माही है। वहरि लक्षण है सो लक्षणही है । जो लक्षण है सो लक्ष्य नाही है । जाते लक्ष्यलक्षणवि कथंचित् भेदाभेदकी सिद्धि पूर्वै कही है । तहा क्षायिक तथा क्षायोपशमिक भाववि ज्ञानदर्शन भेदरूप कहै हैं । तिनि दोऊनिमें सामान्यव्यापी उपयोगकू इहां लक्षण कया है । चैतन्यशक्तिकी लब्धि है सो तौ | नित्य है । ताकी व्यक्ति पंचभावरूप अनेक है । तिनिमें उपयोग भी है सो छमस्थकै अनित्य है । ताकी स्थिति एक। ज्ञेयकेचि रहना उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्तमात्र कया है । बहुरि अनुभवगोचर है, तातै प्रसिद्ध है । लक्षण प्रसिद्धहीकू कहिये है।