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वचनिका
सिद्धि
पान
॥ सम्यक्त्वचारित्रे ॥३॥ याका अर्थ-- औपशमिकभावके भेद औपशमिकसम्यक्त्व औपगमिकचारित्र ए दोय हैं ॥ सम्यक्त्वचारित्र तो पूर्वे जिनका लक्षण कह्या तेही जानने । बहुरि पूछे है, तिनिके औपशमिकपणा कैसै है ? तहां कहिये है, चारित्रमोह दोय प्रकार है । एक कषायवेदनीय एक नोकपायवेदनीय । तहां कषायवेदनीयका भेदनिमैसूं अनंतानुबंधी क्रोध मान माया लोभ ए च्यारि लेने । बहुरि दर्शनमोहके तीन भेद हैं मिथ्यात्व सम्यक्त्वप्रकृति सम्यमिथ्यात्व ऐसे । इनि सात प्रकृतिनिके उपशमते औपशमिकसम्यत्व होय है । इहां कोई पूछे है, अनादिमिथ्यादृष्टि भव्यकै कर्मका उदयकार कलुषपणां
है, ताकै उपशम काहेतें होय ? ताका समाधान- काललब्धि आदिके निमित्त होय है। तहां प्रथम तौ कर्मसहित आत्मा | भव्यजीवकै संसार अर्द्धपुद्गलपरिवर्तन नामा कालमात्र अवशेष रहै, तब प्रथमोपशमसम्यक्त्वके ग्रहण करनेयोग्य होय है । जो संसार अधिक बाकी होय तौ सम्यक्त्वग्रहण न होय । ऐसें एक तौ काललब्धि यहू है । बहुरि दूसरी काललब्धि यह है, जो, कर्मकी स्थिति उत्कृष्ट जाकै बंधती न होय तथा सत्ताका कर्मकी होय तथा जघन्यस्थितिबंधकी तथा सत्ताकी होय तौ तिस अवसरमैं सम्यक्त्वका लाभ न होय । तौ कहां होय ? जब अंतःकोटाकोटी कहिये एक कोडाकोडी सागरमैं नीचे स्थिति लिये कर्मबंध भावकू प्राप्त होय, तथाविशुद्धपरिणामके वशतें सत्ताका कर्मबंधकी स्थितितें संख्यात हजार सागर घाटि रह जाय, तब प्रथमसम्यक्त्वग्रहणयोग्य होय है ॥ बहुरि तीसरी काललब्धि भवकी अपेक्षा है । जो भव्यजीव पंचेंद्रिय होय संज्ञी होय पर्याप्त अवस्थासहित होय सर्वते विशुद्धपरिणाम होय सो प्रथमोपशमसम्य| क्त्वकू उपजावै है । बहुरि आदिशब्दकरि जातिस्मरण आदिक, लेणे । बहुरि समस्त मोहनीयकर्मके उपशमते उपशमचारित्र होय है । तहां सूत्रमैं सम्यक्त्वका आदि वचन है सो चारित्र सम्यक्त्वपूर्वकही होय है । आत्मा पहली सम्यक्त्व अवस्थारूप होय है। अब आत्माकै चारित्र अवस्था प्रकट हो है ॥ ___इहां सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका विशेप लिखिये हैं। तहां प्रथमोपशमसम्यक्त्व उपजे पीछे अंतर्मुहूर्तकाल रहै है । तहां मिथ्यात्वकर्मळू तीन प्रकार विभाग करै मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक्प्रकृतिमिथ्यात्व ऐसै । बहारे यह कहां उपजै है ? तहां नारकी तौ तहां उपजे पीछे अंतर्मुहूर्त पीछे उपजावै है। पहली दूसरी तीसरी पृथ्वीवाला तौ केई जातिस्मरणतें | केई धर्मश्रवणते केई वेदनाकरि पीड्या हवा उपजावै है। बहुरि नीचली च्यार पृथ्वीवाला धर्मश्रवणविना दोयही कारणतें उपजावै है । बहुरि तिर्यच उपजै पीछे च्यारितें ले आठ दिनके उपरि उपजावै है। तहां जातिस्मरण धर्मश्रवण जिनबिंब