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सर्वार्थ
वच
पान
अ.२
। गलदाई रही कछु बाहार निकस्या, तैसें क्षयोपशम जाननां । वहुरि द्रव्य क्षेत्र काल भावके निमित्ततें कर्मके फलकी २
प्राप्ति कहिये उदय आवनां प्रकट होनां सो उदय है । बहुरि द्रव्यका आत्मलाभ कहिये निजस्वरूपका पावनां जाते होय सो परिणाम है । जैसे सुवर्णके पीततादि गुण, कंकण कुंडल आदि पर्याय, तैसै परिणाम जाननां । इहां कर्म आदिकका निमित्त नाही लेना । तहां उपशम है प्रयोजन जाका तारूं औपगमिक कहिये । यहां प्रयोजनार्थमें इक प्रत्ययतें सिद्धि
किया है । ऐसेंही क्षायिक झायोपशमिक औदयिक पारिणामिक जाननां । ते पांच भाव असाधारण जीवके स्वतत्त्व कहिये। सिद्धि
निका टीका
___अब इनिका अनुक्रमका प्रयोजन कहै हैं । इहां सम्यग्दर्शनका प्रकरण है । तहां तीन प्रकार सम्यग्दर्शनविर्षे औप
शमिक पहलै होय है । अनादिमिथ्यादृष्टीकै प्रथमही औपशमिक सम्यक्त्व प्राप्ति होय है । तातें सूत्रविर्षे याकू आदिवि १०९ कह्या है । ताकै पीछे क्षायिक ग्रहण किया है । जाते यहू निर्मलताई में याकी स्पर्धा बरोबरी करै है, प्रतियोगी है। तथा संसारी जीवनिकी अपेक्षा द्रव्यनिकी गणती कीजिये तब औपशमिकवाले जीवनितें असंख्यातगुणे क्षायिकवाले जीव है । काहेते ? जाते औपशमिककाल अंतर्मुहूर्त मात्र है । तामें भेले होय तब अल्पही होय । यातें क्षायिकका काल संसारीकी अपेक्षा तेतीस सागर कछ अधिक है । सो तातें तहां जीवनिकी संख्या भी असंख्यातगुणी भई । ताकै पीछे मिश्र कहिये क्षायोपशमिकका ग्रहण है । जातें इहां दोऊ स्वरूप है । तथा जीव भी इहां असंख्यातगुणे होय हैं। याका काल छ्यासटी सागरका है । बहुरि ताकै पीछे औदयिक पारिणामिकका ग्रहण अंतमें किया । जाते इहां भी जीवनिकी संख्या तिनितें अनंतगुणी है । इहां कोई कहै है, जो, या सूत्रमैं भावनिकै जुदी जुदी विभक्तिकरि वाक्य किया सो कौन कारण ? द्वंद्वसमासतें निर्देश करना था। कैसैं ? " औपशमिकक्षायिकमिश्रौदयिकपारिणामिकाः ” ऐसें । इस भांति किये दोय चकार न आवते तब सूत्रमैं अक्षर थोरे होते । ताकू कहिये, ऐसी आशंका न करणी । जाते इहां मिश्र | ऐसा कह्या हैं सो दोय अन्य गुणकी अपेक्षा है । ताते वाक्यविर्षे चकार शब्दतें पहले कहे जे औपशमिक क्षायिक ए दोय तेही मिश्रमैं ग्रहण करने अन्य न लेणे । बहुरि कहै, जो, क्षायोपशमिक ऐसा शब्द क्यों न कह्या मिश्र काहेवू कह्या ? तहां कहिये, क्षायोपशमिक कहनेमें गौरव होय है- अक्षर सूत्रमैं वधि जाय । ताते वाक्यकरि मिश्र ग्रहण किया है । बहुरि मिश्रका ग्रहण बीचि किया, ताका यह प्रयोजन है, जो, पहले पिछले दोकी अपेक्षा लेणी है । औपशमिक क्षायिक तौ भव्यहीकै होय है । बहुरि मिश्र हैं. सो भव्यकै भी होय अभव्यकै भी होय । बहुरि औदयिक पारिणामिक ए दोऊ भी भव्य तथा अभव्य दोऊहीकै होय । तातै मिश्रका बीचि ग्रहण है ॥
बहुरि कोई पूछ है, भावशब्दकी अपेक्षा स्वतत्त्व शब्दकै ताके लिंग तथा संख्याका प्रसंग आवै है । जाते भावशब्द