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________________ वचनिका सिद्धि पान 11 है । बहुरि या नयत परसंग्रह कहिये । बहुरि द्रव्यमैं सर्वद्रव्यनिका संग्रह करै । पर्यायमें सर्वपर्यायनिका संग्रह कर सा अपरसंग्रह है। ऐसैही जीवमें सर्वजीवनिका संग्रह करै । पुद्गलमें सर्वपुद्गलनिका संग्रह करै । घटमैं सर्व घटनिका संग्रह २ करै । इत्यादि जाननां ॥ आगै व्यवहारनयका लक्षण कहै हैं। संग्रह नयकार ग्रहण किये जे वस्तु तिनिका विधिपूर्वक व्यवहरण कहिये भेदरूपसर्वार्थ करणां सो व्यवहारनय है । कोई पूछै विधि कहाँ ? तारूं कहिये जो संग्रहकरि ग्रह्या पदार्थ है ताहीकू पहलीले अरु टीका भेद करै सो विधि कहिये, जैसे संग्रहकरि सत् ग्रहण किया सो जो विशेषकी अपेक्षा रहित होय तौ तासू व्यवहार १९ प्रवर्ते नाही । तातै व्यवहार नयका आश्रय करिये तब ऐसें कहिये, जो सत् कह्या सो द्रव्यरूप है, तथा गुणरूप है ऐसे सविर्षे भेदकरै तब व्यवहार प्रवतै । तथा द्रव्य ऐसा संग्रह ग्रहण किया सो भी विशेषनिकी अपेक्षा रहित होय तो व्यवहार प्रवर्ते नांही । तातै व्यवहारका आश्रय लीजिये तब द्रव्य है सो जीवद्रव्य है तथा अजीवद्रव्य है; ऐसे भेदकरि व्यवहार प्रवर्ते । ऐसैही जीवद्रव्यका संग्रह होय तामैं देव नारकादि भेद होय अजीवका संग्रह करै तब घटादिकका भेद होय । ऐसें यहु नय तहांताई चल्या जाय जहां फेरि भेद न होय । सो जहां ऋजुसूत्रका विषय है ताकै पहलैताई संग्रह व्यवहार दोऊ नय चले जाय है। आगें ऋजुसूत्र नयका लक्षण कहै है । ऋजु कहिये सरल सूधा सूत्रयति कहिये करै है ताकू ऋजुसूत्र कहिये । १ तहां पूर्व कहिये पहलै, अतीत गये, तथा अपर कहिये पीछे होयगा ऐसै तीन कालके गोचर जे भाव तिनिकू उल्लंधि करि वर्तमानकाल पर्यायमात्रका ग्रहण करनेवाला यहू ऋजुसूत्रनय है । जाते अतीत तौ विनशि गये । बहुरि अनागत उपजेही नाही । तिनिकरि तौ व्यवहारका अभावही है । तातै वर्तमानही व्यवहार प्रव है । इहां कोई कहै है अतीत अनागतका भी लोकविर्षे व्यवहार है सो कैसै चलै ? ताकू कहिये या नयका तो यहुही विषय है सो दिखाया । बहुरि १ लोकव्यवहार तो सर्वनयके समूहकरि साधने योग्य है। जहां जैसा नयका कार्य होय तहां तैसा नय ग्रहण करना । या नयका सर्वथा एकांत अभिप्राय बौद्धमती करै है । द्रव्यका तौ लोप करै है। क्षणस्थायी वस्तु कहै है । तिनिकै सर्वव्यवहारका लोप आवै है। आगें शब्दनयका लक्षण कहै हैं । लिंग, संख्या, साधन इत्यादिकके व्यभिचारकू दूरि करनेवि तत्पर सो शब्दनय है। तहां प्रथमही लिंगव्यभिचार स्त्रीलिंगविर्षे पुरुषलिंग कहना, जैसे, तारका यह स्त्रीलिंग है ताळू स्वाति ऐसा पुरुषलिंग कहना । बहुरि पुरुषलिंगविर्षे स्त्रीलिंग कहना, जैसे अवगमः ऐसा पुरुषलिंग है ताकू विद्या ऐसा स्त्रीलिंग कहनां ।
SR No.010558
Book TitleSarvarthasiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherShrutbhandar va Granthprakashan Samiti Faltan
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size28 MB
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