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श्रीमद्वल्लभाचार्य श्रीमद्वल्लभाचा- वे अपने आचार्य और इस मार्ग के संचालक र्यफा जीवन भगवान् श्रीवल्लभाचार्यचरण के जीवनचरित्र
चरित्र. को जाने और उसे मनन करे । जो वैष्णव होकर भी श्रीमहाप्रभुजी के जीवनका ज्ञान नहीं रखता वह वैष्णव अपनेको नहीं कह सकता । इस लिये वैष्णवोंको आपश्रीका अद्भुत जीवन चरित्र अवश्य मनन करना चाहिये।
ब्रह्मवादके संस्थापक हमारे परम माननीय भगवान् श्रीवल्लभाचार्यका प्रादुर्भाव मध्यप्रान्तमें रायपुर जिलाके राजग्राम समीप चम्पारण्य में वेल्लनाडू ब्राह्मण कुलमें सन् १४७९ में हुआ था। जिस समय मनुष्यका साधारण रीत्या बाल्यकाल हुआ करता है । अर्थात् जिस अवस्था में मनुष्य खेला करता है उसी अल्पावस्था में आपने वेद, उपनिषद् स्मृति, पुराण, इतिहास तथा दर्शन इत्यादि आकर ग्रन्थोंका अभ्यास पूर्ण कर दिया था! यह था आपकी एक अत्यन्त ही मेधावी बुद्धि का साधारण परिचय ! अभ्यासकालमें ही, अर्थात् नौ दस वर्षकी ही अवस्थामें आपने अपनी अप्रतिम तीक्ष्ण बुद्धि द्वारा श्रीशंकरादि प्रतिपादित वादों के गुण दोष समीक्षा कर ली थी! अभ्यास कालमें ही अपने गुरु के यहां आप श्रीशंकरादि प्रतिपादित वादोंके दोष छात्रों को बताते थे।