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________________ और उनके सिद्धान्त । २५ 'सर्व प्राणियों पर दया रखने से प्रभु जल्दी प्रसन्न होते है' । जो दुष्ट लोग अपने साथ दुष्ट व्यवहार करे और क्रूर वचन बोलें तो उन्हे कृष्णमय समझकर सहन करना चाहिये। यह क्षान्ति किसमें है । क्राइष्ट में लोग दया कहते है किन्तु उनका ज्यादामें ज्यादा यह वचन है 'किसी को दुःख मत पहुंचाओ। जो तुम्हारे थप्पड दे उसे दुसरा गाल भी मारनेके लिये दे दो' किन्तु यहां तो चातही दूसरी है | आचार्यश्री आज्ञा करते है कि पतिव्रता स्त्री जैसे अपने पति की लात भी प्रसन्नता से सहन करती है भगवद्भक्त जैसे प्रभुके तरफ आते दुःखों को प्रभुकी लीला समझकर सहन करता है । इसीतरह दुष्ट को कृष्ण मय समझ कर उसके दिये दुःखोंको सहन करना चाहिये । आर्जव ( सरलता ) गुणभी आचार्यश्री में असीम है । आज्ञा करते है कि 'सुज्ञेषु हस्तयुगलं पुरतः प्रसार्य ' 'अहंकारं न कुर्वीत मानापेक्षां च वर्जयेत् ।" अहंकार कभी न करें और मानकी अपेक्षा भी न रक्खे । त्याग संतोष और उपरति ( लाभमें औदासीन्य ) ये गुणभी भगवदीय हैं। जहां भगवान् विराजते हैं वहां ये गुणभी होते हैं। आजकल का त्याग और संन्यास तो त्याग कहने के योग्य ही नहीं है किन्तु जो त्याग भगवद्गीतामें समझाया है वह त्याग श्रीमद्वल्लभाचार्य में जन्मसे था यह आप
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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