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श्रीमदल्लभाचार्य
है। ब्रह्मा ब्राह्मण है । ब्रह्मवेत्ताका नाम ब्राह्मण है। ब्राह्मण्य एक देवत्व है वह जिसमें हो वह ब्राह्मण है । ब्रह्मामें वह देवत्व था। जो लोग नाभिसे उत्पन्न होनेसे ब्रह्माको ब्राह्मणेतर सिद्ध करना चाहते हैं उनकी भूल है । क्योंकि उस समय जन्मसे जातिही नहीं थी। मैथुन सृष्टयनन्तर जन्मसे जातिका नियम हुआ है । वह चाहे कश्यपसे मानो या मनुसे मानो । अतः आजकल ब्राह्मणको आचार्य होनेका प्रथम अधिकार है।
७-आश्रमोंमें भी ब्रह्मचारी ग्रहस्थ और वानप्रस्थ ये तीनो आचार्य हो सक्ते हैं । चतुर्थ सन्यासी आचार्य नहीं हो सक्ता । क्यों कि सन्यासीमें आचार्यशब्दके प्रवृत्ति निमित्तका अधिकार निवृत्त हो जाता है । सन्यासी भगवान् हो सक्ता है आचार्य नहीं हो सक्ता है।
सलिङ्गानाश्रमांस्त्यक्त्वा चरेदविधिगोचरः। बुधो बालकवत्क्रीडेत्कुशलो जडवच्चरेत् । वदेदुन्मत्तवद्विद्वान् गोचर्या नैगमश्चरेत् ।
___ इत्यादि माग० ११ स्कं.। ..."ग्रन्थान्नैवाभ्यसेद्वहून् । ..."नोपदिशेत्कचित् । .... " पक्षं कंच न संश्रयेत् । इत्यादि धर्म जब सन्यासके प्रवृत्ति निमित्त हैं तब सन्यासी आचार्य हो सक्ता है कि